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अ॒स्माक॑मग्ने अध्व॒रं जु॑षस्व॒ सह॑सः सूनो त्रिषधस्थ ह॒व्यम्। व॒यं दे॒वेषु॑ सु॒कृतः॑ स्याम॒ शर्म॑णा नस्त्रि॒वरू॑थेन पाहि ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmākam agne adhvaraṁ juṣasva sahasaḥ sūno triṣadhastha havyam | vayaṁ deveṣu sukṛtaḥ syāma śarmaṇā nas trivarūthena pāhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्माक॑म्। अ॒ग्ने॒। अ॒ध्व॒रम्। जु॒ष॒स्व॒। सह॑सः। सू॒नो॒ इति॑। त्रि॒ऽस॒ध॒स्थ॒। ह॒व्यम्। व॒यम्। दे॒वेषु॑। सु॒ऽकृतः॑। स्या॒म॒। शर्म॑णा। नः॒। त्रि॒ऽवरू॑थेन। पा॒हि॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:4» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसः, सूनो) बलवान् और अतिकालपर्य्यन्त ब्रह्मचर्य्य को धारण किये हुए जन के पुत्र और (त्रिषधस्थ) तीन अर्थात् प्रजा, भृत्य और अपने कुटुम्ब के जनों के साथ पक्षपात छोड़ के रहनेवाले (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी वर्त्तमान राजन् ! आप (अस्माकम्) हम लोगों के (हव्यम्) देने योग्य सुख और (अध्वरम्) पालनरूप व्यवहार का (जुषस्व) सेवन करो और (त्रिवरूथेन) वर्षा, शीत और ग्रीष्मकाल में श्रेष्ठ (शर्मणा) गृह के साथ (नः) हम लोगों का निरन्तर (पाहि) पालन करो जिससे (वयम्) हम लोग (देवेषु) विद्वानों में (सुकृतः) धर्म्मसम्बन्धी कर्म्म करनेवाले (स्याम) होवें ॥८॥
भावार्थभाषाः - सब जन राजा के प्रति यह कहें कि हे राजन् ! आप हम लोगों का पालन यथावत् करिये, आपसे रक्षित हम लोग निरन्तर धर्माचरणयुक्त होकर आपकी उन्नति को जैसे =जिस प्रकार करें ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सहसः सूनो त्रिषधस्थाग्ने ! त्वमस्माकं हव्यमध्वरं जुषस्व त्रिवरूथेन शर्मणा सह नोऽस्मान्त्सततं पाहि यतो वयं देवेषु सुकृतः स्याम ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्माकम्) (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान राजन् (अध्वरम्) पालनाख्यं व्यवहारम् (जुषस्व) (सहसः) बलिष्ठस्य कृतदीर्घब्रह्मचारिणः (सूनो) पुत्र (त्रिषधस्थ) त्रिभिः प्रजाभृत्यात्मीयैर्जनैः सह पक्षपातरहितस्तिष्ठति तत्सम्बुद्धौ (हव्यम्) दातुमर्हं सुखम् (वयम्) (देवेषु) विद्वत्सु (सुकृतः) धर्म्मकर्माचरणाः (स्याम) (शर्मणा) गृहेण (नः) (त्रिवरूथेन) त्रिषु वर्षाहेमन्तग्रीष्मसमयेषु वरूथेन वरेण (पाहि) ॥८॥
भावार्थभाषाः - सर्वे जना राजानं प्रतीदं ब्रूयुर्हे राजँस्त्वमस्माकं पालनं यथावत्कुरु त्वद्रक्षिता वयं सततं धर्माचारिणो भूत्वा तवोन्नतिं यथा कुर्याम ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व लोकांनी राजाला म्हणावे, हे राजा ! तू आमचे यथायोग्य पालन कर. तुझ्याकडून रक्षित असलेले आम्ही धर्माचरणी बनावे व तुझी उन्नती करावी. ॥ ८ ॥