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न स राजा॑ व्यथते॒ यस्मि॒न्निन्द्र॑स्ती॒व्रं सोमं॒ पिब॑ति॒ गोस॑खायम्। आ स॑त्व॒नैरज॑ति॒ हन्ति॑ वृ॒त्रं क्षेति॑ क्षि॒तीः सु॒भगो॒ नाम॒ पुष्य॑न् ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na sa rājā vyathate yasminn indras tīvraṁ somam pibati gosakhāyam | ā satvanair ajati hanti vṛtraṁ kṣeti kṣitīḥ subhago nāma puṣyan ||

पद पाठ

न। सः। राजा॑। व्य॒थ॒ते॒। यस्मि॑न्। इन्द्रः॑। ती॒व्रम्। सोम॑म्। पिब॑ति। गोऽस॑खायम्। आ। स॒त्व॒नैः। अज॑ति। हन्ति॑। वृ॒त्रम्। क्षेति॑। क्षि॒तीः। सु॒ऽभगः॑। नाम॑। पुष्य॑न् ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:37» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:8» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब शीघ्र यानचालनविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्मिन्) जिस राजा में (इन्द्रः) बिजुली (गोसखायम्) भूगोल है मित्र जिसका उस (तीव्रम्) तीव्र (सोमम्) जल का (पिबति) पान करती (सत्वनैः) और रथ आदि द्रव्यों से (आ, अजति) आती और (वृत्रम्) मेघ का (हन्ति) नाश करती है (सः) वह (राजा) राजा (सुभगः) सुन्दर ऐश्वर्य्य जिससे उस (नाम) प्रसिद्धि को (पुष्यन्) पुष्ट करता हुआ (क्षितीः) मनुष्यों को (क्षेति) वसाता है वा ऐश्वर्य्य करता और (न) न (व्यथते) भय वा पीड़ा को प्राप्त होता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जिस राजा के वश में भूमि, जल, अग्नि और पवन हैं, उस राजा को किसी शत्रु आदि से भय कभी नहीं होता और वह राजा यशस्वी और प्रसिद्ध इस जगत् में होता है ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सद्यो यानचालनविषयमाह ॥

अन्वय:

यस्मिन् राजनीन्द्रो गोसखायं तीव्रं सोमं पिबति सत्वनैराजति वृत्रं हन्ति स राजा सुभगो नाम पुष्यन् क्षितीः क्षेति न व्यथते ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) निषेधे (सः) (राजा) (व्यथते) भयं पीडां प्राप्नोति (यस्मिन्) (इन्द्रः) विद्युत् (तीव्रम्) (सोमम्) जलम् (पिबति) (गोसखायम्) गौर्भूगोलः सखा यस्य तम् (आ) (सत्वनैः) रथादिद्रव्यैः (अजति) गच्छति (हन्ति) नाशयति (वृत्रम्) मेघम् (क्षेति) निवासयत्यैश्वर्य्यं करोति वा (क्षितीः) मनुष्यान् (सुभगः) शोभनो भग ऐश्वर्य्यं यस्मात्तम् (नाम) प्रसिद्धिम् (पुष्यन्) ॥४॥
भावार्थभाषाः - यस्य राज्ञो वशे भूमिजलाग्निवायवो वर्त्तन्ते यस्य राज्ञः कुतश्चिदर्य्यादेर्भयं कदाचिन्न जायते यशस्वी प्रसिद्धश्चाऽस्मिञ्जगति भवति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थर् - ज्या राजाच्या ताब्यात भूमी, जल, अग्नी व वायू आहेत त्या राजाला कोणत्याही शत्रू इत्यादींचे कधीही भय नसते व तो राजा जगात प्रसिद्ध व यशस्वी होतो. ॥ ४ ॥