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च॒क्रं न वृ॒त्तं पु॑रुहूत वेपते॒ मनो॑ भि॒या मे॒ अम॑ते॒रिद॑द्रिवः। रथा॒दधि॑ त्वा जरि॒ता स॑दावृध कु॒विन्नु स्तो॑षन्मघवन्पुरू॒वसुः॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

cakraṁ na vṛttam puruhūta vepate mano bhiyā me amater id adrivaḥ | rathād adhi tvā jaritā sadāvṛdha kuvin nu stoṣan maghavan purūvasuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

च॒क्रम्। न। वृ॒त्तम्। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। वे॒प॒ते॒। मनः॑। भि॒या। मे॒। अम॑तेः। इत्। अ॒द्रि॒ऽवः॒। रथा॑त्। अधि॑। त्वा॒। ज॒रि॒ता। स॒दा॒ऽवृ॒ध॒। कु॒वित्। नु। स्तो॒ष॒त्। म॒घ॒ऽव॒न्। पु॒रु॒ऽवसुः॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:36» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अद्रिवः) मेघ और सूर्य्य के सदृश वर्त्तमान (पुरुहूत) बहुतों में सत्कार पाये हुए (मघवन्) बहुत धनों से युक्त (सदावृध) सदा वृद्धि करनेवाले राजन् ! जिस कारण (अमतेः, मे) मुझ निर्बुद्धि का (इत्) ही (मनः) चित्त (रथात्) वाहन से (वृत्तम्) वर्त्ते हुए (चक्रम्) चक्र के (न) सदृश (भिया) भय से (वेपते) कंपता है, उस कारण का आप निवारण कीजिये और जो (कुवित्) महान् (पुरूवसुः) असंख्यधन से युक्त (जरिता) स्तुति करनेवाला (त्वा) आपकी (नु) निश्चय (अधि, स्तोषत्) स्तुति करे उसका आप सत्कार करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो राजा चोर और साहस करनेवाले जनों का प्रयत्न से न निवारण करे और श्रेष्ठ जनों का न सत्कार करे तो भय के उद्भव से प्रजायें व्याकुल होवें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अद्रिवः पुरुहूत मघवन् सदावृध राजन् ! यस्मादमतेर्म इन्मनो रथाद् वृत्तं चक्रं न भिया वेपते तं त्वं निवारय यः कुवित्पुरूवसुर्जरिता त्वा न्वधि स्तोषत् तं त्वं सत्कुर्य्याः ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (चक्रम्) (न) इव (वृत्तम्) (पुरुहूत) बहुषु सत्कृत (वेपते) कम्पते (मनः) चित्तम् (भिया) भयेन (मे) मम (अमतेः) निर्बुद्धेः (इत्) एव (अद्रिवः) मेघवत्सूर्य इव (रथात्) यानात् (अधि) (त्वा) त्वाम् (जरिता) स्तावकः (सदावृध) सदैव वर्धक (कुवित्) महान् (नु) (स्तोषत्) स्तुयात् (मघवन्) बहुधनयुक्त (पुरूवसुः) असङ्ख्यधनः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यदि राजा चोरान् साहसिकादीन् प्रयत्नेन न निरुन्ध्याच्छ्रेष्ठान् न सत्कुर्यात्तर्हि भयोद्भवेन प्रजा उद्विग्नाः स्युः ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा राजा चोर व धीट असणाऱ्या लोकांचे प्रयत्नपूर्वक निवारण करीत नाही, श्रेष्ठ लोकांचा सत्कार करीत नाही, तेव्हा प्रजा भयाने व्याकुळ होते. ॥ ३ ॥