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यस्याव॑धीत्पि॒तरं॒ यस्य॑ मा॒तरं॒ यस्य॑ श॒क्रो भ्रात॑रं॒ नात॑ ईषते। वेतीद्व॑स्य॒ प्रय॑ता यतंक॒रो न किल्बि॑षादीषते॒ वस्व॑ आक॒रः ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasyāvadhīt pitaraṁ yasya mātaraṁ yasya śakro bhrātaraṁ nāta īṣate | vetīd v asya prayatā yataṁkaro na kilbiṣād īṣate vasva ākaraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्य॑। अव॑धीत्। पि॒तर॑म्। यस्य॑। मा॒तर॑म्। यस्य॑। श॒क्रः। भ्रात॑रम्। न। अतः॑। ई॒ष॒ते॒। वेति॑। इत्। ऊँ॒ इति॑। अस्य। प्रऽय॑ता। य॒त॒म्ऽक॒रः। न। किल्वि॑षात्। ई॒ष॒ते॒। वस्वः॑। आ॒ऽक॒रः ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:34» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रजाविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शक्रः) सामर्थ्यवान् जन (यस्य) जिसके (पितरम्) पिता का (यस्य) जिसकी (मातरम्) माता का और (यस्य) जिसके (भ्रातरम्) भ्राता का (न) नहीं (अवधीत्) नाश करे (अतः) इससे इसका (न) नहीं (ईषते) नाश करता और (अस्य) इसके (यतङ्करः) प्रयत्न करनेवाले के (न) सदृश (प्रयता) अत्यन्त दिये हुओं की (वेति) कामना करता है (उ) और (वस्वः) धन का (आकरः) समूह (किल्विषात्) पाप से पृथक् (इत्) ही (ईषते) प्राप्त होता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो पिता, माता और भ्रातृ आदि पालन करें, उनके पुत्र आदि को चाहिये कि निरन्तर सत्कार करें और जो पापाचरण का त्याग करके धर्म्म का आचरण करते हैं, वे सब काल में सुखी होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रजाविषयमाह ॥

अन्वय:

शक्रो यस्य पितरं यस्य मातरं यस्य भ्रातरं नावधीदतोऽस्य नेषतेऽस्य यतङ्करो न प्रयता वेति उ वस्व आकरः किल्विषात् पृथगिदीषते प्राप्नोति ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) (अवधीत्) (पितरम्) (यस्य) (मातरम्) जननीम् (यस्य) (शक्रः) शक्तिमान् (भ्रातरम्) सहोदरम् (न) निषेधे (अतः) (ईषते) हिनस्ति (वेति) कामयते (इत्) (उ) (अस्य) (प्रयता) प्रकर्षेण दत्तानि (यतङ्करः) यः प्रयत्नं करोति (न) इव (किल्विषात्) पापात् (ईषते) (वस्वः) वसुनो धनस्य (आकरः) समूहः ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये पितामाताभ्रात्रादयः पालयेयुस्तेषां पुत्रादिभिः सततं सत्कारः कर्त्तव्यो ये पापाचरणं विहाय धर्म्ममाचरन्ति ते सर्वदा सुखिनो जायन्ते ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे माता-पिता व बंधू इत्यादींचे पालन करतात. त्यांच्या पुत्रांनी त्यांचा निरंतर सत्कार करावा. जे पापाचरणाचा त्याग करून धर्माचे आचरण करतात ते सदैव सुखी होतात. ॥ ४ ॥