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उ॒त त्ये मा॑ पौरुकु॒त्स्यस्य॑ सू॒रेस्त्र॒सद॑स्योर्हिर॒णिनो॒ ररा॑णाः। वह॑न्तु मा॒ दश॒ श्येता॑सो अस्य गैरिक्षि॒तस्य॒ क्रतु॑भि॒र्नु स॑श्चे ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tye mā paurukutsyasya sūres trasadasyor hiraṇino rarāṇāḥ | vahantu mā daśa śyetāso asya gairikṣitasya kratubhir nu saśce ||

पद पाठ

उ॒त। त्ये। मा॒। पौ॒रु॒ऽकु॒त्स्यस्य॑। सू॒रेः। त्र॒सद॑स्योः। हि॒र॒णिनः। ररा॑णाः। वह॑न्तु। मा॒। दश॑। श्येता॑सः। अ॒स्य॒। गै॒रि॒ऽक्षि॒तस्य॑। क्रतु॑ऽभिः। नु। स॒श्चे॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:33» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:2» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पौरुकुत्स्यस्य) बहुत वज्र आदि शस्त्र और अस्त्रों को जाननेवाले के सन्तान (त्रसदस्योः) जिससे डाकू चोर आदि डरते हैं ऐसे (हिरणिनः) सुवर्ण धन आदि से युक्त (अस्य) इस (गैरिक्षितस्य) पर्वत में रहनेवाले (सूरेः) बुद्धिमान् जन की (क्रतुभिः) बुद्धि और कर्म्मों के साथ (रराणाः) रमते वा देते हुए (मा) मुझ को (वहन्तु) प्राप्त हों (उत) और भी (त्ये) वे (दश) दश संख्या परिमित (श्येतासः) श्वेत वर्णवाले घोड़े के सदृश (मा) मुझ को प्राप्त हों, उनका मैं (नु) शीघ्र (सश्चे) सम्बन्ध करता हूँ ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो सत्य धारण करनेवाले और सत्पुरुष जिनके मित्र ऐसे जन बुद्धि को बढ़ाते हुए दुष्टों का निवारण करते हैं, उनके साथ मैं मेल करता हूँ ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

पौरुकुत्स्यस्य त्रसदस्योर्हिरणिनोऽस्य गैरिक्षितस्य सूरेः क्रतुभिस्सह रराणा मा वहन्तूत त्ये दश श्येतास इव मा वहन्तु तानहं नु सश्चे ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (त्ये) ते (मा) माम् (पौरुकुत्स्यस्य) बहुवज्रादिशस्त्राऽस्त्रविदोऽपत्यस्य (सूरेः) मेधाविनः (त्रसदस्योः) त्रस्यन्ति दस्यवो यस्मात् (हिरणिनः) हिरण्यादिधनयुक्तस्य (रराणाः) रममाणा ददमाना वा (वहन्तु) (मा) माम् (दश) (श्येतासः) श्वेतवर्णा अश्वाः (अस्य) (गैरिक्षितस्य) गिरौ पर्वते क्षितं निवसनं यस्य तस्य (क्रतुभिः) प्रज्ञाकर्मभिः (नु) सद्यः (सश्चे) सम्बध्नामि ॥८॥
भावार्थभाषाः - ये सत्यसन्धाः सत्पुरुषमित्राः प्रज्ञां वर्धयन्तो दुष्टान्निवारयन्ति तैः सहाहमनुबध्नामि ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सत्यवादी व सत्पुरुषमित्र असून बुद्धी वाढवितात व दुष्टांचे निवारण करतात त्यांच्याबरोबर मी संबंध वाढवितो. ॥ ८ ॥