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स्थि॒रं मन॑श्चकृषे जा॒त इ॑न्द्र॒ वेषीदेको॑ यु॒धये॒ भूय॑सश्चित्। अश्मा॑नं चि॒च्छव॑सा दिद्युतो॒ वि वि॒दो गवा॑मू॒र्वमु॒स्रिया॑णाम् ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sthiram manaś cakṛṣe jāta indra veṣīd eko yudhaye bhūyasaś cit | aśmānaṁ cic chavasā didyuto vi vido gavām ūrvam usriyāṇām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्थि॒रम्। मनः॑। च॒कृ॒षे॒। जा॒तः। इ॒न्द्रः॒। वेषि॑। इत्। एकः॑। यु॒धये॑। भूय॑सः। चि॒त्। अश्मा॑नम्। चि॒त्। शव॑सा। दि॒द्यु॒तः॒। वि॒। वि॒दः। गवा॑म्। ऊ॒र्वम्। उ॒स्रिया॑णाम् ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:30» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब वीरों के कर्म्म को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) योगजन्य ऐश्वर्य की इच्छा करनेवाले जन ! जिस प्रकार (एकः) एक सूर्य्य (युधये) युद्ध के लिये (शवसा) बल से (अश्मानम्) मेघ को और (भूयसः) बहुत (चित्) भी मेघों को तथा (गवाम्) चलनेवाले (उस्रियाणाम्) किरणों के (ऊर्वम्) नाश करनेवालों को (चकृषे) करता और दोनों (चित्) निश्चित (वि, दिद्युतः) प्रकाश करते हैं, वैसे आप विजय को (विदः) जनाइये, एक (जातः) प्रकट हुए आप जिससे (मनः) अन्तःकरण को (स्थिरम्) निश्चल करते हो (इत्) इसी से राज्य को (वेषि) प्राप्त होते हो ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य और मेघ परस्पर युद्ध करते हैं, वैसे राजा शत्रु के साथ संग्राम करे और जैसे सूर्य्य किरणों से सब कार्य्य को सिद्ध करता है, वैसे राजा सेना और मन्त्रीजनों से सम्पूर्ण राजकृत्य सिद्ध करे ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ वीरकर्म्माह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! यथैकः सूर्य्यो युधये शवसाऽश्मानं भूयसश्चिद् घनाँश्च गवामुस्रियाणामूर्वं चकृषे द्वौ चिद्वि दिद्युतस्तथा त्वं विजयं विदः। एको जातस्त्वं यतो मनः स्थिरं चकृषे तस्मादिद् राज्यं वेषि ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्थिरम्) निश्चलम् (मनः) अन्तःकरणम् (चकृषे) करोति (जातः) प्रकटः सन् (इन्द्र) योगैश्वर्यमिच्छुक (वेषि) व्याप्नोषि (इत्) एव (एकः) (युधये) युद्धाय (भूयसः) बहून् (चित्) अपि (अश्मानम्) मेघम् (चित्) अपि (शवसा) बलेन (दिद्युतः) प्रकाशयतः (वि) (विदः) वेदय (गवाम्) गन्तॄणाम् (ऊर्वम्) हिंसकम् (उस्रियाणाम्) रश्मीनाम् ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा सूर्य्यमेघौ युद्ध्येते तथा राजा शत्रुणा सह सङ्ग्रामं कुर्य्याद्यथा सूर्य्यः किरणैः सर्वं कार्यं साध्नोति तथा राजा सेनाऽमात्यैः सर्वं राजकृत्यं साधयेत् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सूर्य व मेघ परस्पर युद्ध करतात तसे राजाने शत्रूबरोबर युद्ध करावे व जसे सूर्य किरणांद्वारे सर्व कार्य पूर्ण करतो तसे राजाने मंत्र्यांकडून सर्व राज्याचे कार्य करवून घ्यावे. ॥ ४ ॥