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प्र नु व॒यं सु॒ते या ते॑ कृ॒तानीन्द्र॒ ब्रवा॑म॒ यानि॑ नो॒ जुजो॑षः। वेद॒दवि॑द्वाञ्छृ॒णव॑च्च वि॒द्वान्वह॑ते॒ऽयं म॒घवा॒ सर्व॑सेनः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra nu vayaṁ sute yā te kṛtānīndra bravāma yāni no jujoṣaḥ | vedad avidvāñ chṛṇavac ca vidvān vahate yam maghavā sarvasenaḥ ||

पद पाठ

प्र। नु। व॒यम्। सु॒ते। या। ते॒। कृ॒तानि॑। इन्द्र॑। ब्रवा॑म। यानि॑। नः॒। जुजो॑षः। वेद॑त्। अवि॑द्वान्। शृ॒णव॑त्। च॒। वि॒द्वान्। व॑हते। अ॒यम्। म॒घऽवा॑। सर्व॑ऽसेनः ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:30» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) विद्वन् ! (या) जिन (ते) आपके (सुते) उत्पन्न हुए संसार में (कृतानि) किये हुए कार्य्यों का (नः) हम लोगों के (यानि) जिन कार्य्यों को (जुजोषः) आप सेवते हो उनका (वयम्) हम लोग (नु) शीघ्र (प्र, ब्रवाम) उपदेश देवें और जब (अयम्) यह (मघवा) बहुत धनवाला और (सर्वसेनः) सम्पूर्ण सेनाओं से युक्त (विद्वान्) विद्वान् जन विद्या को (वहते) प्राप्त होता वा प्राप्त कराता है, तब यह (अविद्वान्) विद्या से रहित जन (शृणवत्) श्रवण करे और (वेदत्) विशेष करके जाने (च) भी ॥३॥
भावार्थभाषाः - दो उपाय विद्या की प्राप्ति के लिए जानने चाहियें, उनमें प्रथम उपाय यह कि विद्या का अध्यापक यथार्थवक्ता होवे तथा सुनने और पढ़नेवाला पवित्र, कपटरहित और पुरुषार्थी होवे। दूसरा उपाय यह है कि श्रेष्ठ विद्वानों का कर्म्म देख कर आप भी वैसा ही कर्म्म करे, ऐसा करने पर सब को विद्या का लाभ होवे ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! या ते सुते कृतानि नः यानि त्वं जुजोषस्तानि वयं नु प्र ब्रवाम यदाऽयं मघवा सर्वसेनो विद्वान् विद्यां वहते तदायमविद्वाञ्छृणवद्वेदच्च ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (नु) सद्यः (वयम्) (सुते) उत्पन्ने जगति (या) यानि (ते) तव (कृतानि) (इन्द्र) विद्वन् (ब्रवाम) उपदिशेम (यानि) (नः) अस्माकम् (जुजोषः) जुषसे (वेदत्) विजानीयात् (अविद्वान्) (शृणवत्) शृणुयात् (च) विद्वान् (वहते) प्राप्नोति प्रापयति वा (अयम्) (मघवा) बहुधनवान् (सर्वसेनः) सर्वाः सेना यस्य सः ॥३॥
भावार्थभाषाः - द्वावुपायौ विद्याप्राप्तये वेदितव्यौ तत्राद्यो विद्याऽध्यापक आप्तो भवेच्छ्रोताऽध्येता च पवित्रो निष्कपटी पुरुषार्थी स्यात्। द्वितीयः सतां विदुषां क्रियां दृष्ट्वा स्वयमपि तादृशीं कुर्य्यादेवं कृते सर्वेषां विद्यालाभो भवेत् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्याप्राप्तीचे दोन उपाय आहेत. प्रथम उपाय हा आहे की, विद्येचा अध्यापक आप्त विद्वान असावा. ऐकणारा व शिकणारा पवित्र, कपटरहित व पुरुषार्थी असावा. दुसरा उपाय असा आहे की श्रेष्ठ विद्वानांचे कर्म पाहून आपणही तसेच कर्म करावे. असे करण्याने सर्वांना विद्येचा लाभ होईल. ॥ ३ ॥