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अव॑ स्पृधि पि॒तरं॒ योधि॑ वि॒द्वान्पु॒त्रो यस्ते॑ सहसः सून ऊ॒हे। क॒दा चि॑कित्वो अ॒भि च॑क्षसे॒ नोऽग्ने॑ क॒दाँ ऋ॑त॒चिद्या॑तयासे ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ava spṛdhi pitaraṁ yodhi vidvān putro yas te sahasaḥ sūna ūhe | kadā cikitvo abhi cakṣase no gne kadām̐ ṛtacid yātayāse ||

पद पाठ

अव॑। स्पृ॒धि॒। पि॒तर॑म्। योधि॑। वि॒द्वान्। पु॒त्रः। यः। ते॒। स॒ह॒सः॒। सू॒नो॒ इति॑। ऊ॒हे। क॒दा। चि॒कि॒त्वः॒। अ॒भि। च॒क्ष॒से॒। नः॒। अ॒ग्ने॑। क॒दा। ऋ॒त॒ऽचित्। या॒त॒या॒से॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:3» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सन्तानशिक्षाविषयक प्रजाधर्म को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसः) ब्रह्मचर्य्यबल से युक्त पुरुष के (सूनो) पुत्र (चिकित्वः) बुद्धियुक्त (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्विन् (ते) तेरे लिये मैं (ऊहे) विशेष तर्क करता हूँ (यः) जो तू (विद्वान्) विद्यावान् (पुत्रः) दुःख से रक्षा करनेवाला है सो (पितरम्) पिता अर्थात् अपने पालनेवाले की (अव, स्पृधि) अभिकाङ्क्षा कर और दुःख को (योधि) दूर कर तथा (ऋतचित्) सत्य का संचय करनेवाले तुम (नः) हम लोगों को (कदा) कब (अभि, चक्षसे) उपदेश दोगे और (कदा) कब अच्छे कामों में (यातयासे) प्रेरणा करोगे ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो कन्या और बालकों को माता-पिता ब्रह्मचर्य से विद्या प्राप्त करावें और पूर्ण युवावस्था में विवाह करावें तो वे अत्यन्त सुख को प्राप्त होवें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सन्तानशिक्षाविषयकं प्रजाधर्ममाह ॥

अन्वय:

हे सहसस्सूनो चिकित्वोऽग्ने ! ते तुभ्यमहमूहे यस्त्वं विद्वान् पुत्रस्स पितरमव स्पृधि दुःखं योधि। ऋतचित्त्वं नोऽस्मान् कदाऽभि चक्षसे सत्कर्मसु कदा यातयासे ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अव) (स्पृधि) अभिकाङ्क्ष (पितरम्) पालकम् (योधि) वियोजय (विद्वान्) (पुत्रः) (यः) (ते) (सहसः) ब्रह्मचर्यबलयुक्तस्य (सूनो) अपत्य (ऊहे) वितर्कयामि (कदा) (चिकित्वः) (अभि) (चक्षसे) उपदिशेः (नः) अस्मान् (अग्ने) (कदा) (ऋतचित्) य ऋतं चिनोति सः (यातयासे) प्रेरयेः ॥९॥
भावार्थभाषाः - यदि कन्या बालकाँश्च पितरौ ब्रह्मचर्य्येण विद्याः प्रापयेयुः पूर्णयुवावस्थायां विवाहयेयुस्तर्हि तेऽत्यन्तं सुखमाप्नुयुः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर बालक व बालिका यांना माता व पिता यांनी ब्रह्मचर्याने विद्या प्राप्त करून दिली व युवावस्थेत विवाह करून दिला तर ते अत्यंत सुखी होतील. ॥ ९ ॥