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सखा॒ सख्ये॑ अपच॒त्तूय॑म॒ग्निर॒स्य क्रत्वा॑ महि॒षा त्री श॒तानि॑। त्री सा॒कमिन्द्रो॒ मनु॑षः॒ सरां॑सि सु॒तं पि॑बद्वृत्र॒हत्या॑य॒ सोम॑म् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sakhā sakhye apacat tūyam agnir asya kratvā mahiṣā trī śatāni | trī sākam indro manuṣaḥ sarāṁsi sutam pibad vṛtrahatyāya somam ||

पद पाठ

सखा॑। सख्ये॑। अ॒प॒च॒त्। तूय॑म्। अ॒ग्निः। अ॒स्य। क्रत्वा॑। म॒हि॒षा। त्री। श॒तानि॑। त्री। सा॒कम्। इन्द्रः॑। मनु॑षः। सरां॑सि। सु॒तम्। पि॒ब॒त्। वृ॒त्र॒ऽहत्या॑य। सोम॑म् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:29» मन्त्र:7 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:24» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सूर्य्यदृष्टान्त से राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (अग्निः) अग्नि और (इन्द्रः) सूर्य्य (तूयम्) शीघ्र (अस्य) इस जगत् के मध्य में (त्री) तीन भुवनों को प्रकाशित करता हुआ (सरांसि) तडागों का (पिबत्) पान करता है और (वृत्रहत्याय) मेघ के नाश करने के लिये (सुतम्) वर्षाये गये (सोमम्) ऐश्वर्य्य को (अपचत्) पचाता है, वैसे (सखा) मित्र (क्रत्वा) बुद्धि वा कर्म्म से (सख्ये) मित्र के लिये (साकम्) सहित (मनुषः) मनुष्य के (महिषा) बड़े पशुओं के (त्री) तीन (शतानि) सैकड़ों की रक्षा करे ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य ऊपर, नीचे और मध्यभाग में वर्त्तमान स्थूल पदार्थों का प्रकाश करता है, वैसे उत्तम, मध्यम और अधम व्यवहारों को राजा प्रकट करे और सबके साथ मित्र के सदृश वर्त्ताव करे ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सूर्य्यदृष्टान्तेन राजविषयमाह ॥

अन्वय:

यथाग्निरिन्द्रस्तूयमस्य जगतो मध्ये त्री भुवनानि प्रकाशयन् सरांसि पिबद् वृत्रहत्याय सुतं सोममपचत् तथा सखा क्रत्वा सख्ये साकं मनुषो महिषा त्री शतानि रक्षेत् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सखा) मित्रम् (सख्ये) (अपचत्) पचति (तूयम्) तूर्णम् (अग्निः) पावकः (अस्य) (क्रत्वा) प्रज्ञया कर्म्मणा वा (महिषा) महिषाणां महताम् पशूनाम् (त्री) त्रीणि (शतानि) (त्री) (साकम्) (इन्द्रः) सूर्य्यः (मनुषः) मनुषस्य (सरांसि) तडागान् (सुतम्) वर्षितम् (पिबत्) पिबति (वृत्रहत्याय) मेघस्य हननाय (सोमम्) ऐश्वर्य्यम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यथा सूर्य्य ऊर्ध्वाऽधोमध्यस्थान् स्थूलान् पदार्थान् प्रकाशयति तथोत्तममध्याऽधमान् व्यवहारान् राजा प्रकटीकुर्य्यात् सर्वैः सह सुहृद्वद्वर्त्तेत ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य वर, खाली व मध्यभागी असलेल्या स्थूल पदार्थांना प्रकाशित करतो. तसे उत्तम, मध्यम व अधम व्यवहारांना राजाने प्रकट करावे व सर्वांबरोबर मित्राप्रमाणे वागावे. ॥ ७ ॥