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नव॒ यद॑स्य नव॒तिं च॑ भो॒गान्त्सा॒कं वज्रे॑ण म॒घवा॑ विवृ॒श्चत्। अर्च॒न्तीन्द्रं॑ म॒रुतः॑ स॒धस्थे॒ त्रैष्टु॑भेन॒ वच॑सा बाधत॒ द्याम् ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nava yad asya navatiṁ ca bhogān sākaṁ vajreṇa maghavā vivṛścat | arcantīndram marutaḥ sadhasthe traiṣṭubhena vacasā bādhata dyām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नव॑। यत्। अ॒स्य॒। न॒व॒तिम्। च॒। भो॒गान्। सा॒कम्। वज्रे॑ण। म॒घऽवा॑। वि॒ऽवृ॒श्चत्। अर्च॑न्ति। इन्द्र॑म्। म॒रुतः॑। स॒धऽस्थे॑। त्रैस्तु॑भेन। वच॑सा। बा॒ध॒त॒। द्याम् ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:29» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:24» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् (मघवा) बहुत धन से युक्त आप जैसे सूर्य्य (वज्रेण) वज्र के (साकम्) साथ (अस्य) इस सूर्य्य और जगत् के मध्य में (यत्) जिन (नव) नव और (नवतिम्) नब्बे (भोगान्) भोगों को उत्पन्न करता और अन्धकार आदि का (विवृश्चत्) नाश करता है तथा जैसे (मरुतः) मनुष्य (सधस्थे) समान स्थान में (त्रैष्टुभेन) तीन प्रकार स्तुति किये गये (वचसा) वचन से (इन्द्रम्) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाले का (अर्चन्ति) सत्कार करते हैं, और (द्याम्) कामना की (च) भी (बाधत) बाधा करते हैं, वैसे ही दुःख और द्रारिद्र्य का नाश करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! आप काम की आसक्ति का त्याग करके और न्याय से सबका सत्कार करके असङ्ख्य भोगों को प्रजाओं के लिये धारण कीजिये ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! मघवा त्वं यथा सूर्य्यो वज्रेण साकमस्य जगतो मध्ये यद्यान् नव नवतिं भोगाञ्जनयत्यन्धकारादिकं विवृश्चद्यथा मरुतः सधस्थे त्रैष्टुभेन वचसेन्द्रमर्चन्ति द्यां च बाधत तथैव दुःखदारिद्र्यं विनाशय ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नव) (यत्) यान् (अस्य) सूर्य्यस्य (नवतिम्) (च) (भोगान्) (साकम्) (वज्रेण) (मघवा) बहुधनयुक्तः (विवृश्चत्) छिनत्ति (अर्चन्ति) सत्कुर्वन्ति (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यवन्तम् (मरुतः) मनुष्याः (सधस्थे) सहस्थाने (त्रैष्टुभेन) त्रिधा स्तुतेन (वचसा) (बाधत) (द्याम्) कामनाम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे राजँस्त्वं कामासक्तिं विहाय न्यायेन सर्वान् सत्कृत्याऽसङ्ख्यान् भोगान् प्रजाभ्यो धेहि ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा तू कामासक्ती सोडून दे. न्यायाने सर्वांचा आदर कर. प्रजेला असंख्य भोग पदार्थ दे. ॥ ६ ॥