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क॒थो नु ते॒ परि॑ चराणि वि॒द्वान्वी॒र्या॑ मघव॒न्या च॒कर्थ॑। या चो॒ नु नव्या॑ कृ॒णवः॑ शविष्ठ॒ प्रेदु॒ ता ते॑ वि॒दथे॑षु ब्रवाम ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

katho nu te pari carāṇi vidvān vīryā maghavan yā cakartha | yā co nu navyā kṛṇavaḥ śaviṣṭha pred u tā te vidatheṣu bravāma ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒थो इति॑। नु। ते॒। परि॑। च॒रा॒णि॒। वि॒द्वान्। वी॒र्या॑। म॒घ॒ऽव॒न्। या। च॒कर्थ॑। या। चो॒ इति॑। नु। नव्या॑। कृ॒णवः॑। श॒वि॒ष्ठ॒। प्र। इत्। ऊँ॒ इति॑। ता। ते॒। वि॒दथे॑षु। ब्र॒वा॒म॒ ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:29» मन्त्र:13 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) श्रेष्ठ धन से युक्त ! (या) जो (ते) आपकी (परि) सब ओर से (चराणि) चलनेवाली और प्राप्त होने योग्य (वीर्या) पराक्रमयुक्त सेनाओं को (कथो) किस प्रकार (नु) निश्चय से (चकर्थ) करते हो तथा (विद्वान्) विद्वान् आप (या) जिनको (चो) और (नव्या) नवीनों में उत्पन्नों को (नु) निश्चय से (कृणवः) सिद्ध करते हो। हे (शविष्ठ) अतिशय करके बलिष्ठ ! (ते) आपके जिनको (विदथेषु) सङ्ग्रामों में हम लोग (प्र, ब्रवाम) उपदेश करें (ता) उनको (इत्) निश्चय से (उ) भी आप ग्रहण करो ॥१३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि सदा ही नवीन-नवीन विद्या और नवीन-नवीन कार्य्य को सिद्ध करके ऐश्वर्य्य को प्राप्त होवें, इसी प्रकार अन्यों के प्रति उपदेश करें ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मघवन् ! या ते परि चराणि वीर्या कथो नु चकर्थ विद्वांस्त्वं या चो नव्या नु कृणवः। हे शविष्ठ ! ते यानि विदथेषु वयं प्र ब्रवाम ता तानीदु त्वं गृहाण ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कथो) कथम् (नु) (ते) तव (परि) सर्वतः (चराणि) गतिमन्ति प्राप्तव्यानि वा (विद्वान्) (वीर्या) वीर्ययुक्तानि सैन्यानि (मघवन्) पूजितधनयुक्त (या) यानि (चकर्थ) करोषि (या) यानि (चो) च (नु) (नव्या) नवेषु भवानि (कृणवः) करोषि (शविष्ठ) अतिशयेन बलिष्ठ (प्र) (इत्) एव (उ) (ता) तानि (ते) तव (विदथेषु) सङ्ग्रामेषु (ब्रवाम) उपदिशेम ॥१३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्याः सदैव नवीना नवीना विद्या नूतनं नूतनं कार्य्यं संसाध्यैश्वर्य्यं प्राप्नुयुरेवमन्यान् प्रत्युपदिशन्तु ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी सदैव नवनवीन विद्या व नवनवीन कार्य करून ऐश्वर्य प्राप्त करावे. याच प्रकारे इतरांना उपदेश करावा. ॥ १३ ॥