वांछित मन्त्र चुनें

समि॑द्धस्य॒ प्रम॑ह॒सोऽग्ने॒ वन्दे॒ तव॒ श्रिय॑म्। वृ॒ष॒भो द्यु॒म्नवाँ॑ असि॒ सम॑ध्व॒रेष्वि॑ध्यसे ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

samiddhasya pramahaso gne vande tava śriyam | vṛṣabho dyumnavām̐ asi sam adhvareṣv idhyase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्ऽइ॑द्धस्य। प्रऽम॑हसः। अग्ने॑। वन्दे॑। तव॑। श्रिय॑म्। वृ॒ष॒भः। द्यु॒म्न॒ऽवा॑न्। अ॒सि॒। सम्। अ॒ध्व॒रेषु॑। इ॒ध्य॒से॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:28» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वद्विषय में राज्यप्रकार को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) राजन् ! जो तुम (वृषभः) बलिष्ठ वा उत्तम और (द्युम्नवान्) यशस्वी (असि) हो और (अध्वरेषु) राज्य के पालन आदि व्यवहारों में (सम्, इध्यसे) प्रकाशित किये जाते हो उन (समिद्धस्य) प्रकाशमान और (प्रमहसः) और प्रकृष्ट बड़े (तव) आपके (श्रियम्) धन की मैं (वन्दे) प्रशंसा वा सत्कार करता हँ ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो राजा अग्नि आदि के गुणों से युक्त हुआ अच्छे न्याय को यथावत् करता है, वह यज्ञों में अग्नि के सदृश सर्वत्र प्रकट यशवाला होता है ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषये राज्यप्रकारमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने राजन् ! यस्त्वं वृषभो द्युम्नवानस्यध्वरेषु समिध्यसे तस्य समिद्धस्य प्रमहसस्तव श्रियमहं वन्दे ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (समिद्धस्य) प्रकाशमानस्य (प्रमहसः) प्रकृष्टस्य महतः (अग्ने) राजन् (वन्दे) प्रशंसामि सत्करोमि वा (तव) (श्रियम्) धनम् (वृषभः) बलिष्ठ उत्तमो वा (द्युम्नवान्) यशस्वी (असि) (सम्) (अध्वरेषु) राज्यपालनादिषु व्यवहारेषु (इध्यसे) प्रदीप्यसे ॥४॥
भावार्थभाषाः - यो राजा अग्न्यादिगुणयुक्तः सन्न्यायं यथावत्करोति स यज्ञेषु पावक इव सर्वत्र प्रकाशितकीर्त्तिर्भवति ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा अग्नी इत्यादींच्या गुणांप्रमाणे यथायोग्य चांगला न्याय करतो. तो यज्ञातील अग्नीप्रमाणे सर्वत्र प्रकाशित होऊन कीर्तिमान बनतो. ॥ ४ ॥