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इन्द्रा॑ग्नी शत॒दाव्न्यश्व॑मेधे सु॒वीर्य॑म्। क्ष॒त्रं धा॑रयतं बृ॒हद्दि॒वि सूर्य॑मिवा॒जर॑म् ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāgnī śatadāvny aśvamedhe suvīryam | kṣatraṁ dhārayatam bṛhad divi sūryam ivājaram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। श॒त॒ऽदाव्नि॑। अश्व॑ऽमेधे। सु॒ऽवीर्य॑म्। क्ष॒त्रम्। धा॒र॒य॒त॒म्। बृ॒हत्। दि॒वि। सूर्य॑म्ऽइव। अ॒जर॑म् ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:27» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:21» मन्त्र:6 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उपदेशविषय में राज्योपदेशविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली के सदृश अध्यापक और उपदेशक जनो ! (शतदाव्नि) असङ्ख्य पदार्थों को देनेवाले (अश्वमेधे) राज्यपालन व्यवहार और (दिवि) प्रकाशयुक्त अन्तरिक्ष में (सूर्य्यमिव) सूर्य्य के सदृश (सुवीर्य्यम्) उत्तम पराक्रम तथा बलयुक्त और (अजरम्) नाश से रहित (बृहत्) बड़े (क्षत्रम्) क्षत्रियों के कुल वा राज्यदेश को (धारयतम्) धारण करो अर्थात् यथायोग्य उपदेश दीजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे राजा आदि जनो ! प्रयत्न से आप लोग यथार्थवक्ता, बहुत अध्यापक और उपदेशकों को अपने और दूसरे के राज्य में प्रचार कराइये जिससे आप लोगों का राज्य नाशरहित होवे ॥६॥ इस सूक्त में अग्नि विद्वान् और राजा के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह सत्ताईसवाँ सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोपदेशविषये राज्योपदेशविषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्राग्नी इव वर्त्तमानावध्यापकौपदेशकौ ! शतदाव्न्यश्वमेधे दिवि सूर्य्यमिव सुवीर्य्यमजरं बृहत् क्षत्रं धारयतं यथावदुपदिशेतम् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्राग्नी) वायुविद्युताविवाध्यापकोपदेशकौ (शतदाव्नि) असङ्ख्यदाने (अश्वमेधे) राज्यपालनाख्ये व्यवहारे (सुवीर्य्यम्) सुष्ठु वीर्य्यं पराक्रमो बलं च यस्मिंस्तत् (क्षत्रम्) क्षत्रियकुलं राष्ट्रं वा (धारयतम्) (बृहत्) महत् (दिवि) प्रकाशयुक्तेऽन्तरिक्षे (सूर्य्यमिव) (अजरम्) नाशरहितम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे राजादयो जनाः ! प्रयत्नेन भवन्त आप्तानध्यापकोपदेशकान् बहून् स्वपरराज्ये प्रचारयन्तु यतो युष्माकं राज्यमक्षयं भवेदिति ॥६॥ अत्राग्निविद्वद्राजगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति सप्तविंशतितमं सूक्तमेकविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा इत्यादी लोकांनो! तुम्ही प्रयत्नपूर्वक आप्त, अध्यापक व उपदेशक यांना आपल्या व इतरांच्या राज्यात प्रचार करावयास लावा. ज्यामुळे तुमचे राज्य निष्कंटक होईल. ॥ ६ ॥