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यो म॒ इति॑ प्र॒वोच॒त्यश्व॑मेधाय सू॒रये॑। दद॑दृ॒चा स॒निं य॒ते दद॑न्मे॒धामृ॑ताय॒ते ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo ma iti pravocaty aśvamedhāya sūraye | dadad ṛcā saniṁ yate dadan medhām ṛtāyate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। मे॒। इति॑। प्र॒ऽवोच॑ति। अश्व॑ऽमेधाय। सू॒रये॑। दद॑त्। ऋ॒चा। स॒निम्। य॒ते। दद॑त्। मे॒धाम्। ऋ॒त॒ऽय॒ते ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:27» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उपदेशविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (अश्वमेधाय) शीघ्र पवित्र (सूरये) विद्वान् (मे) मेरे लिये (ऋचा) ऋग्वेदादि से (सनिम्) सेवन करने योग्य तथा सत्य और असत्य की विभाग करनेवाली वाणी को (ददत्) देवे और (ऋतायते) सत्य की कामना करते हुए (यते) यत्न करनेवाले मेरे लिये (मेधाम्) बुद्धि को (ददत्) देवे, उसका सत्कार आप करो (इति) इस प्रकार से मेरे प्रति जो (प्रवोचति) उपदेश देता है, उसका उपकार मैं मानता हूँ ॥४॥
भावार्थभाषाः - उपदेशक जन जब अन्य जनों के प्रति उपदेश देवें, तब इस प्रकार वेद और शास्त्रों में कहे और यथार्थवक्ताओं से आचरण किये गये इस विषय का हम आप लोगों के लिये उपदेश देवें, इस प्रकार प्रत्युपदेश कहें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोपदेशविषयमाह ॥

अन्वय:

योऽश्वमेधाय सूरये म ऋचा सनिं दददृतायते यते मे मेधां ददत् तस्य सत्कारं त्वं कुर्विति मां प्रति यः प्रवोचति तस्योपकारमहं मन्ये ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (मे) मह्यम् (इति) अनेन प्रकारेण (प्रवोचति) उपदिशति (अश्वमेधाय) आशुपवित्राय (सूरये) विदुषे (ददत्) दद्यात् (ऋचा) ऋग्वेदादिना (सनिम्) सेवनीयां सत्याऽसत्ययोर्विभाजिकां वाणीम् (यते) यत्नशीलाय (ददत्) दद्यात् (मेधाम्) प्रज्ञाम् (ऋतायते) ऋतं कामयमानाय ॥४॥
भावार्थभाषाः - उपदेशका यदाऽन्यान् प्रत्युपदिशेयुस्तदैव वेदशास्त्रेषूक्तमाप्तैराचरितमिदं वयं युष्मभ्यमुपदिशामेति प्रत्युपदेशं ब्रूयुः ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - उपदेशक जेव्हा इतरांना उपदेश देतात तेव्हा वेद व शास्त्रात सांगितलेल्या आणि आप्ताकडून आचरणात आणलेल्या विषयाचा आम्ही तुम्हाला उपदेश करतो असा प्रत्युपदेश करावा. ॥ ४ ॥