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अन॑स्वन्ता॒ सत्प॑तिर्मामहे मे॒ गावा॒ चेति॑ष्ठो॒ असु॑रो म॒घोनः॑। त्रै॒वृ॒ष्णो अ॑ग्ने द॒शभिः॑ स॒हस्रै॒र्वैश्वा॑नर॒ त्र्य॑रुणश्चिकेत ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

anasvantā satpatir māmahe me gāvā cetiṣṭho asuro maghonaḥ | traivṛṣṇo agne daśabhiḥ sahasrair vaiśvānara tryaruṇaś ciketa ||

पद पाठ

अन॑स्वन्ता। सत्ऽप॑तिः। म॒म॒हे॒। मे॒। गावा॑। चेतिष्ठः॑। असु॑रः। म॒घोनः॑। त्रै॒वृ॒ष्णः। अ॒ग्ने॒। द॒शऽभिः॑। स॒हस्रैः॑। वैश्वा॑नर। त्रिऽअ॑रुणः। चि॒के॒त॒ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:27» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:21» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब छः ऋचावाले सत्ताईसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निसादृश्य से विद्वान् के गुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वैश्वानर) सब में प्रकाशमान (अग्ने) अग्नि के सदृश ! (सत्पतिः) श्रेष्ठ जनों के पालनेवाले (दशभिः) दश (सहस्रैः) सहस्रों के साथ (अनस्वन्ता) उत्तम शकट आदि वाहनों से युक्त (गावा) गौ अर्थात् वाणी के साथ (चेतिष्ठः) अत्यन्तता से बोध देनेवाले (असुरः) प्राणों में रमते हुए (त्रैवृष्णः) जो तीन में वर्षते वही (त्र्यरुणः) तीन गुणों से युक्त हुए आप (मे) मेरे (मघोनः) अत्यन्त धनयुक्त पुरुषों को (चिकेत) जानें, उनका मैं (मामहे) सत्कार करूँ ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष शकट आदि वाहनों के चलाने में चतुर और अनेक सहस्रों पुरुषों के साथ मेल करते हैं, वे धन-धान्य और पशुओं से युक्त होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निसादृश्येन विद्वद्गुणानाह ॥

अन्वय:

हे वैश्वानराग्ने ! सत्पतिर्दशभिः सहस्रैरनस्वन्ता गावा सह चेतिष्ठोऽसुरस्त्रैवृष्णस्त्र्यरुणः संस्त्वं मे मघोनश्चिकेत तमहं मामहे ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अनस्वन्ता) उत्तमशकटादियुक्तः (सत्पतिः) सतां पालकः (मामहे) सत्कुर्याम् (मे) (गावा) (चेतिष्ठः) अतिशयेन चेतिता ज्ञापकः (असुरः) असुषु प्राणेषु रममाणः (मघोनः) परमधनयुक्तान् (त्रैवृष्णः) यस्त्रिषु वर्षति स एव (अग्ने) (दशभिः) (सहस्रैः) (वैश्वानर) विश्वेषु राजमान (त्र्यरुणः) त्रयोऽरुणा गुणा यस्य सः (चिकेत) जानीयात् ॥१॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः शकटादियानचालनकुशला अनेकैः सहस्रैः पुरुषैः सह सन्धिं कुर्वन्ति ते धनधान्यपशुयुक्ता जायन्ते ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नी, विद्वान व राजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जी माणसे शकट इत्यादी यान चालविण्यात कुशल, हजारो पुरुषांशी जमवून घेतात ती धन, धान्य, पशूंनी युक्त होतात. ॥ १ ॥