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प्र य॒ज्ञ ए॑त्वानु॒षग॒द्या दे॒वव्य॑चस्तमः। स्तृ॒णी॒त ब॒र्हिरा॒सदे॑ ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra yajña etv ānuṣag adyā devavyacastamaḥ | stṛṇīta barhir āsade ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। य॒ज्ञः। ए॒तु॒। आ॒नु॒षक्। अ॒द्य। दे॒वव्य॑चःऽतमः। स्तृ॒णी॒त। ब॒र्हिः। आ॒ऽसदे॑ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:26» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जो (देवव्यचस्तमः) उत्तम पदार्थों में अतिशय करके व्याप्त (यज्ञः) सत्य और सङ्गत व्यवहार (अद्या) आज (आसदे) सब प्रकार से ठहरने वा जाने के अर्थ (बर्हिः) अन्तरिक्ष को (आनुषक्) अनुकूलता से (एतु) प्राप्त हो, उसको आप लोग (प्र, स्तृणीत) अच्छे प्रकार आच्छादित करो अर्थात् सुरक्षित रक्खो ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य श्रेष्ठों की सङ्गति करके शिल्पविद्या की उन्नति करते हैं, वे सबके हितैषी होते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यो देवव्यचस्तमो यज्ञोऽद्याऽऽसदे बर्हिरानुषगेतु तं यूयं प्र स्तृणीत ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (यज्ञः) सत्यः सङ्गतो व्यवहारः (एतु) प्राप्नोतु (आनुषक्) आनुकूल्येन (अद्या) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (देवव्यचस्तमः) यो देवेषु दिव्येषु पदार्थेष्वतिशयेन व्याप्तः (स्तृणीत) आच्छादयत (बर्हिः) अन्तरिक्षम् (आसदे) समन्तात् स्थित्यर्थं गमनार्थं वा ॥८॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सत्सङ्गतिं कृत्वा शिल्पोन्नतिं विदधते ते सर्वहितैषिणो भवन्ति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सत्संगतीने शिल्पोन्नती करतात ती सर्वांची हितैषी असतात. ॥ ८ ॥