वांछित मन्त्र चुनें

यज॑मानाय सुन्व॒त आग्ने॑ सु॒वीर्यं॑ वह। दे॒वैरा स॑त्सि ब॒र्हिषि॑ ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yajamānāya sunvata āgne suvīryaṁ vaha | devair ā satsi barhiṣi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यज॑मानाय। सु॒न्व॒ते। आ। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽवीर्य॑म्। व॒ह॒। दे॒वैः। आ। स॒त्सि॒। ब॒र्हिषि॑ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:26» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:19» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! आप (देवैः) विद्वानों के साथ (बर्हिषि) अति उत्तम (सत्सि) सभा में (सुन्वते) यज्ञ करते हुए (यजमानाय) दाता जन के लिये (सुवीर्यम्) उत्तम पराक्रम को (आ, वह) प्राप्त हूजिये और यज्ञ को (आ) अच्छे प्रकार करिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! पालन करनेवाले जन के लिये आप लोग सुख सदा ही दीजिये और सब प्रजा की सभा से सब व्यवहारों का निश्चय कीजिये ॥५॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वं देवैः सह बर्हिषि सत्सि सुन्वते यजमानाय सुवीर्यमा वह यज्ञमा यज ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यजमानाय) दात्रे (सुन्वते) यज्ञं निष्पादयते (आ) (अग्ने) विद्वन् (सुवीर्यम्) (वह) प्राप्नुहि (देवैः) विद्वद्भिः (आ) (सत्सि) सभायाम् (बर्हिषि) अत्युत्तमायाम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! पालकाय जनाय यूयं सुखं सदैव दत्त सर्वेषां सभया सर्वान् व्यवहारान् निश्चिनुत ॥५॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! पालकांना तुम्ही सदैव सुख द्या व सर्वांच्या सभेद्वारे सर्व व्यवहारांचा निश्चय करा. ॥ ५ ॥