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अग्ने॒ विश्वे॑भि॒रा ग॑हि दे॒वेभि॑र्ह॒व्यदा॑तये। होता॑रं त्वा वृणीमहे ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne viśvebhir ā gahi devebhir havyadātaye | hotāraṁ tvā vṛṇīmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। विश्वे॑भिः। आ। ग॒हि॒। दे॒वे॒भिः॑। ह॒व्यऽदा॑तये। होता॑रम्। त्वा॒। वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:26» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! जिन (होतारम्) देनेवाले (त्वा) आपका हम लोग (वृणीमहे) स्वीकार करते हैं, वह आप (हव्यदातये) देने योग्य दान के लिये (विश्वेभिः) सम्पूर्ण (देवेभिः) विद्वानों के साथ (आ, गहि) प्राप्त हूजिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि विद्वानों का सत्कार कर उन्हें बुलावें और विद्वान् जन भी विद्वानों के साथ प्राप्त होकर निरन्तर सत्य का उपदेश करें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यं होतारं त्वा वयं वृणीमहे स त्वं हव्यदातये विश्वेभिर्देवेभिः सहा गहि ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) विद्वन् (विश्वेभिः) समग्रैः (आ) (गहि) आगच्छ (देवेभिः) विद्वद्भिः (हव्यदातये) दातव्यदानाय (होतारम्) (त्वा) (वृणीमहे) ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्विदुषां स्वीकारं कृत्वा त आह्वातव्या, विद्वांसश्च विद्वद्भिः सहागत्य सततं सत्यमुपदिशन्तु ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी विद्वानांचा सत्कार करून त्यांना आमंत्रित करावे व विद्वानांनीही विद्वानांच्या संगतीत राहून निरंतर सत्याचा उपदेश करावा. ॥ ४ ॥