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अ॒ग्निस्तु॒विश्र॑वस्तमं तु॒विब्र॑ह्माणमुत्त॒मम्। अ॒तूर्तं॑ श्राव॒यत्प॑तिं पु॒त्रं द॑दाति दा॒शुषे॑ ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agnis tuviśravastamaṁ tuvibrahmāṇam uttamam | atūrtaṁ śrāvayatpatim putraṁ dadāti dāśuṣe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्निः। तु॒विश्र॑वःऽतमम्। तु॒विऽब्र॑ह्माणम्। उ॒त्ऽत॒मम्। अ॒तूर्त्त॑म्। श्र॒व॒यत्ऽप॑तिम्। पु॒त्रम्। द॒दा॒ति॒। दा॒शु॒षे॑ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:25» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:17» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (अग्निः) अग्नि के सदृश तेजस्वी विद्वान् (दाशुषे) दानशील जन के लिये (तुविश्रवस्तमम्) अत्यन्त बहुत अन्न और श्रवण से युक्त और (तुविब्रह्माणम्) चार वेद के जाननेवाले बहुत विद्वानों के युक्त (उत्तमम्) अत्यन्त श्रेष्ठ (अतूर्त्तम्) नहीं हिंसित और (श्रावयत्पतिम्) सुनाते हुए पालन करनेवाले से युक्त (पुत्रम्) सन्तान को (ददाति) देता है, वही अत्यन्त आदर करने योग्य होता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! उन लोगों का ही आप लोग सत्कार करो, जो सबको विद्वान् और धार्मिक करते हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

यो अग्निरिव दाशुषे तुविश्रवस्तमं तुविब्रह्माणमुत्तममतूर्त्तं श्रावयत्पतिं पुत्रं ददाति स एव पूजनीयतमो भवति ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निः) विद्वान् (तुविश्रवस्तमम्) अतिशयेन बह्वन्नश्रवणयुक्तम् (तुविब्रह्माणम्) बहवो ब्रह्माणश्चतुर्वेदविदो विद्वांसो यस्य तम् (उत्तमम्) अतिशयेन श्रेष्ठम् (अतूर्त्तम्) अहिंसितम् (श्रावयत्पतिम्) श्रावयन्पतिर्यस्य तम् (पुत्रम्) (ददाति) (दाशुषे) दानशीलाय ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यास्तेषामेव यूयं सत्कारं कुरुत ये सर्वान् विदुषो धार्मिकान् कुर्वन्ति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जे सर्वांना विद्वान व धार्मिक करतात त्याच लोकांचा तुम्ही सत्कार करा. ॥ ५ ॥