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ये अ॑ग्ने॒ नेरय॑न्ति ते वृ॒द्धा उ॒ग्रस्य॒ शव॑सः। अप॒ द्वेषो॒ अप॒ ह्वरो॒ऽन्यव्र॑तस्य सश्चिरे ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ye agne nerayanti te vṛddhā ugrasya śavasaḥ | apa dveṣo apa hvaro nyavratasya saścire ||

पद पाठ

ये। अ॒ग्ने॒। न। ई॒रय॑न्ति। ते॒। वृ॒द्धाः। उ॒ग्रस्य॑। शव॑सः। अप॑। द्वेषः॑। अप॑। ह्वरः॑। अ॒न्यऽव्र॑तस्य। स॒श्चि॒रे॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:20» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! (ये) जो (वृद्धाः) विद्या और अवस्था से वृद्ध जन (ते) आपके (उग्रस्य) उत्तम (शवसः) बल के सम्बन्ध में (सश्चिरे) गमन करनेवाले हैं और (द्वेषः) द्वेष करनेवाले (अप) दूर जाते हैं (अन्यव्रतस्य) धर्म से विरुद्ध आचरणवाले के सम्बन्ध में (ह्वरः) कुटिल आचरणवाले (अप) अलग जाते हैं, वे दुःख की (न) नहीं (ईरयन्ति) प्रेरणा करते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - वे ही वृद्ध हैं, जो सत्य बोलते और सब का उपकार करके अपने सदृश सुख देते और कभी धर्म्म से विरुद्ध आचरण नहीं करते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! ये वृद्धा ते उग्रस्य शवसः सश्चिरे द्वेषोऽप सश्चिरेऽन्यव्रतस्य ह्वरोऽप सश्चिरे ते दुःखं नेरयन्ति ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) (अग्ने) विद्वन् (न) निषेधे (ईरयन्ति) (ते) तव (वृद्धाः) विद्यावयोभ्यां स्थविराः (उग्रस्य) उत्कृष्टस्य (शवसः) बलस्य (अप) (द्वेषः) ये द्विषन्ति ते (अप) (ह्वरः) कुटिलाचरणाः (अन्यव्रतस्य) धर्म्मविरुद्धाचरणस्य (सश्चिरे) ॥२॥
भावार्थभाषाः - त एव वृद्धा ये सत्यं वदन्ति सर्वानुपकृत्य स्वात्मवत्सुखयन्ति कदाचिद्धर्म्मविरुद्धं नाचरन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सत्य बोलतात व सर्वांवर उपकार करून स्वतःप्रमाणे इतरांना सुख देतात. कधी धर्माविरुद्ध आचरण करीत नाहीत तेच वृद्ध असतात. ॥ २ ॥