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वि ज्योति॑षा बृह॒ता भा॑त्य॒ग्निरा॒विर्विश्वा॑नि कृणुते महि॒त्वा। प्रादे॑वीर्मा॒याः स॑हते दु॒रेवाः॒ शिशी॑ते॒ शृङ्गे॒ रक्ष॑से वि॒निक्षे॑ ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vi jyotiṣā bṛhatā bhāty agnir āvir viśvāni kṛṇute mahitvā | prādevīr māyāḥ sahate durevāḥ śiśīte śṛṅge rakṣase vinikṣe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि। ज्योति॑षा। बृ॒ह॒ता। भा॒ति॒। अ॒ग्निः। आ॒विः। विश्वा॑नि। कृ॒णु॒ते॒। म॒हि॒ऽत्वा। प्र। अदे॑वीः। मा॒याः। स॒ह॒ते॒। दुः॒ऽएवाः॑। शिशी॑ते। शृङ्गे॒ इति॑। रक्ष॑से। वि॒ऽनिक्षे॑ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:2» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:15» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जैसे (अग्निः) सूर्य्य आदि रूप से अग्नि (बृहता) बड़े (ज्योतिषा) प्रकाश से (महित्वा) बड़प्पन से (विश्वानि) सम्पूर्ण वस्तुओं को (आविः) प्रकट (कृणुते) करता है (वि) विशेष करके (भाति) प्रकाशित होता है और (प्र) अत्यन्त (सहते) सहन करता है (शृङ्गे) शृङ्ग के निमित्त (रक्षसे) दुष्टों के विनाश के लिये (विनिक्षे) वा अन्य विनाश के लिये (शिशीते) प्रतापयुक्त होता है, वैसे (दुरेवाः) दुष्ट प्राप्त कराने रूप कर्मवाली (अदेवीः) अशुद्ध (मायाः) छल आदि से युक्त बुद्धियों को सब प्रकार से वारण कीजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य अन्धकार का वारण कर और प्रकाश को उत्पन्न करके भय का निवारण करता है, वैसे ही विद्वान् जन घोर अज्ञान का निवारण करके विद्यारूप सूर्य को उत्पन्न करके सब के आत्माओं को प्रकाशित करें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यथाग्निर्बृहता ज्योतिषा महित्वा विश्वान्याविष्कृणुते वि भाति प्र सहते शृङ्गे रक्षसे विनिक्षे शिशीते तथा दुरेवा अदेवीर्मायाः सर्वतो निवारयतः ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वि) विशेषेण (ज्योतिषा) प्रकाशेन (बृहता) महता (भाति) प्रकाशते (अग्निः) सूर्यादिरूपेण पावकः (आविः) प्राकट्ये (विश्वानि) सर्वाणि वस्तूनि (कृणुते) (महित्वा) महत्त्वेन (प्र) (अदेवीः) अशुद्धाः (मायाः) छलादियुक्ता प्रज्ञाः (सहते) (दुरेवाः) दुष्टमेवः प्रापणं कर्म यासां ताः (शिशीते) तेजते (शृङ्गे) (रक्षसे) दुष्टानां विनाशाय (विनिक्षे) विनाशाय ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्योऽन्धकारं निवार्य प्रकाशं जनयित्वा भयं निवारयति तथैव विद्वांसो गाढमज्ञानं निवार्य विद्यार्कं जनयित्वा सर्वेषामात्मनः प्रकाशयन्तु ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य अंधकाराचे निवारण करून प्रकाश उत्पन्न करतो व भयाचे निवारण करतो तसेच विद्वान लोक गाढ अज्ञानाचे निवारण करून विद्यारूपी सूर्य उत्पन्न करून सर्व आत्म्यांमध्ये प्रकाश करवितात. ॥ ९ ॥