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ए॒तं ते॒ स्तोमं॑ तुविजात॒ विप्रो॒ रथं॒ न धीरः॒ स्वपा॑ अतक्षम्। यदीद॑ग्ने॒ प्रति॒ त्वं दे॑व॒ हर्याः॒ स्व॑र्वतीर॒प ए॑ना जयेम ॥११

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

etaṁ te stomaṁ tuvijāta vipro rathaṁ na dhīraḥ svapā atakṣam | yadīd agne prati tvaṁ deva haryāḥ svarvatīr apa enā jayema ||

पद पाठ

ए॒तम्। ते॒। स्तोम॑म्। तु॒वि॒ऽजा॒त॒। विप्रः॑। रथ॑म्। न। धीरः॑। सु॒ऽअपाः॑। अ॒त॒क्ष॒म्। यदि॑। इत्। अ॒ग्ने॒। प्रति॑। त्वम्। दे॒व॒। हर्याः॑। स्वः॑ऽवतीः। अ॒पः। ए॒ना। ज॒ये॒म॒ ॥११

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:2» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों के गुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (तुविजात) बहुत विद्वानों में प्रसिद्ध (अग्ने) विद्वन् ! जैसे मैं (ते) आपका (स्वपाः) उत्तम कर्म्म करनेवाला (धीरः) क्षमा आदि गुणों से युक्त और ध्यान करनेवाला (विप्रः) बुद्धिमान् जन के (न) सदृश (एतम्) इस श्रेष्ठ गुणों के प्रकाशक (रथम्) सुन्दर वाहन को (अतक्षम्) बनाता हूँ, वैसे (त्वम्) आचरण कीजिये और हे (देव) सम्पूर्ण विद्या के देनेवाले ! (यदि) जो आप वाहन को रचिये तो (इत्) ही (स्तोमम्) प्रशंसित व्यवहार जिसमें ऐसे सुख को प्राप्त हूजिये और जैसे हम लोग (एना) इससे (हर्याः) कामना करने योग्य अर्थात् सुन्दर (स्वर्वतीः) अच्छे सुखों से युक्त (अपः) प्राणों से युक्त (प्रति, जयेम) प्रति जीतें, वैसे आप इनको जीतिये ॥११
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् जन धर्म्मयुक्त कामनाओं को करके विजयी होते हैं, वैसे ही आप लोग भी आचरण करो ॥११
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्गुणानाह ॥

अन्वय:

हे तुविजाताग्ने ! यथाहं ते स्वपा धीरो विप्रो नैतं रथमतक्षं तथा त्वमाचर। हे देव ! यदि त्वं रथं रचयेस्तर्हीत्स्तोमं प्राप्नुयाः। यथा वयमेना हर्याः स्वर्वतीरपः प्रति जयेम तथा त्वमेता जय ॥११

पदार्थान्वयभाषाः - (एतम्) शुभगुणप्रकाशकम् (ते) तव (स्तोमम्) प्रशंसितव्यवहारम् (तुविजात) बहुषु विद्वत्सु प्रसिद्ध (विप्रः) मेधावी (रथम्) रमणीययानम् (न) इव (धीरः) क्षमादिगुणान्वितो ध्यानकृत् (स्वपाः) सुष्ठुकर्मा (अतक्षम्) निर्ममे (यदि) (इत्) (अग्ने) विद्वन् (प्रति) (त्वम्) (देव) सकलविद्याप्रदातः (हर्याः) कमनीयाः (स्वर्वतीः) प्रशस्तसुखयुक्ताः (अपः) प्राणान् (एना) एनेन (जयेम) ॥११
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा विपश्चितो धर्म्याः कामनाः कृत्वा जयिनो भवन्ति तथैव यूयमप्याचरत ॥११
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे विद्वान लोक धर्माची इच्छा बाळगून विजय प्राप्त करतात तसे तुम्हीही आचरण करा. ॥ ११ ॥