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अ॒ग्नेः स्तोमं॑ मनामहे सि॒ध्रम॒द्य दि॑वि॒स्पृशः॑। दे॒वस्य॑ द्रविण॒स्यवः॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agneḥ stomam manāmahe sidhram adya divispṛśaḥ | devasya draviṇasyavaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्नेः। स्तोम॑म्। म॒ना॒म॒हे॒। सि॒ध्रम्। अ॒द्य। दि॒वि॒ऽस्पृशः॑। दे॒वस्य॑। द्र॒वि॒ण॒स्यवः॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:13» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:5» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अग्निगुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (द्रविणस्यवः) अपने धन की इच्छा करनेवाले हम लोग (अद्य) आज (दिविस्पृशः) परमात्मा में सुख को स्पर्श करनेवाले (देवस्य) प्रकाशमान (अग्नेः) अग्नि के (सिध्रम्) साधक (स्तोमम्) गुण, कर्म और स्वभाव की प्रशंसा को (मनामहे) मानते हैं, वैसे इसको आप लोग भी जानो ॥२॥
भावार्थभाषाः - जिनकी धन की इच्छा होवे, वे अग्नि आदि पदार्थों के विज्ञान को ग्रहण करें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निगुणानाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा द्रविणस्यवो वयमद्य दिविस्पृशो देवस्याग्नेः सिध्रं स्तोमं मनामहे तथैतं यूयमपि विजानीत ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्नेः) पावकस्य (स्तोमम्) गुणकर्मस्वभावप्रशंसाम् (मनामहे) (सिध्रम्) साधकम् (अद्य) (दिविस्पृशः) यो दिवि परमात्मनि सुखं स्पृशति तस्य (देवस्य) द्योतमानस्य (द्रविणस्यवः) आत्मनो द्रविणमिच्छमानाः ॥२॥
भावार्थभाषाः - येषा धनेच्छा स्यात्तेऽग्न्यादिपदार्थविज्ञानं सङ्गृह्णन्तु ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्यांना धनाची इच्छा असेल त्यांनी अग्नी इत्यादी पदार्थांचे विज्ञान ग्रहण करावे. ॥ २ ॥