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अर्च॑न्तस्त्वा हवाम॒हेऽर्च॑न्तः॒ समि॑धीमहि। अग्ने॒ अर्च॑न्त ऊ॒तये॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

arcantas tvā havāmahe rcantaḥ sam idhīmahi | agne arcanta ūtaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अर्च॑न्तः। त्वा॒। ह॒वा॒म॒हे॒। अर्च॑न्तः। सम्। इ॒धी॒म॒हि॒। अग्ने॑। अर्च॑न्तः। ऊ॒तये॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:13» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:5» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब छः ऋचावाले तेरहवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्निपदवाच्य विद्वान् के गुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! हम लोग (ऊतये) रक्षण आदि के लिये (त्वा) आपका (अर्चन्तः) सत्कार करते हुए (हवामहे) स्वीकार करते हैं, और आपका (अर्चन्तः) सत्कार करते हुए (सम्, इधीमहि) प्रकाश करें और आपका (अर्चन्तः) सत्कार करते हुए विद्वान् होवें ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! हम लोग आप लोगों के सत्कार से उत्तम शिक्षा और विद्या को प्राप्त होकर आनन्दित होवें ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निपदवाच्यविद्वद्गुणानाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! वयमूतये त्वार्चन्तो हवामहे त्वामर्चन्तः समिधीमहि त्वामर्चन्तो विपश्चितो भवेम ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्चन्तः) सत्कुर्वन्तः (त्वा) त्वाम् (हवामहे) स्वीकुर्महे (अर्चन्तः) (सम्, इधीमहि) प्रकाशयेम (अग्ने) विद्वन् (अर्चन्तः) सत्कुर्वन्तः (ऊतये) रक्षणाद्याय ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! वयं भवतां सत्कारेण सुशिक्षां विद्यां लब्ध्वाऽऽनन्दिताः स्याम ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नी व विद्वान यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! आम्ही तुमचा सत्कार करून उत्तम शिक्षण व विद्या प्राप्त करावी. ॥ १ ॥