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नू नो॑ अग्न ऊ॒तये॑ स॒बाध॑सश्च रा॒तये॑। अ॒स्माका॑सश्च सू॒रयो॒ विश्वा॒ आशा॑स्तरी॒षणि॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nū no agna ūtaye sabādhasaś ca rātaye | asmākāsaś ca sūrayo viśvā āśās tarīṣaṇi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नू। नः॒। अ॒ग्ने॒। ऊ॒तये॑। स॒ऽबाध॑सः। च॒। रा॒तये॑। अ॒स्माका॑सः। च॒। सू॒रयः॑। विश्वाः॑। आशाः॑। त॒री॒षणि॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:10» मन्त्र:6 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:2» मन्त्र:6 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् राजन् ! जो (सबाधसः) बाध के सहित वर्त्तमान (च) और (अस्माकासः) हम लोगों के सम्बन्धी (सूरयः) विद्वान् जन (नः) हम लोगों की (ऊतये) रक्षा आदि के लिये और (रातये) दान के लिये (च) भी (विश्वाः) सम्पूर्ण (आशाः) दिशाओं को (तरीषणि) तरण में, हम लोगों को (नू) शीघ्र पहुँचावें, वे परोपकारी होते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - वे ही चतुर विद्वान् हैं, जो विमान आदि वाहनों को रच के भूगोल में चारों ओर घुमाते हैं, वे प्रशंसित दानवाले होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यो सबाधसश्चास्माकासः सूरयो न ऊतये रातये च विश्वा आशास्तरीषणि नोऽस्मान्नू प्रापयेयुस्ते परोपकारिणो जायन्ते ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नू) सद्यः (नः) अस्माकम् (अग्ने) विद्वन् राजन् (ऊतये) रक्षाद्याय (सबाधसः) बाधेन सह वर्त्तमानाः (च) (रातये) दानाय (अस्माकासः) अस्माकमिमे (च) (सूरयः) (विश्वाः) सकलाः (आशाः) दिशः (तरीषणि) तरणे ॥६॥
भावार्थभाषाः - त एव पण्डिता ये विमानादीनि यानानि निर्माय भूगोलेऽभितो भ्रामयन्ति ते प्रशंसितदाना भवन्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विमान इत्यादी याने निर्माण करून भूगोलाच्या सर्व बाजूंनी भ्रमण करतात ते प्रशंसित दानदाते असतात व तेच चतुर विद्वान असतात. ॥ ६ ॥