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तुभ्यं॑ भरन्ति क्षि॒तयो॑ यविष्ठ ब॒लिम॑ग्ने॒ अन्ति॑त॒ ओत दू॒रात्। आ भन्दि॑ष्ठस्य सुम॒तिं चि॑किद्धि बृ॒हत्ते॑ अग्ने॒ महि॒ शर्म॑ भ॒द्रम् ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tubhyam bharanti kṣitayo yaviṣṭha balim agne antita ota dūrāt | ā bhandiṣṭhasya sumatiṁ cikiddhi bṛhat te agne mahi śarma bhadram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तुभ्य॑म्। भ॒र॒न्ति॒। क्षि॒तयः॑। य॒वि॒ष्ठ॒। ब॒लिम्। अ॒ग्ने॒। अन्ति॑तः। आ। उ॒त। दू॒रात्। आ। भन्दि॑ष्ठस्य। सुऽम॒तिम्। चि॒कि॒द्धि॒। बृ॒हत्। ते॒। अ॒ग्ने॒। महि॑। शर्म॑। भ॒द्रम् ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:1» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:13» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (यविष्ठ) अतिशय युवा (अग्ने) बिजली के सदृश विद्या में व्याप्त जिससे आप (अन्तितः) समीप से (उत) और (दूरात्) दूर से आकर सब को सत्य का उपदेश करते हो, इससे (क्षितयः) गृहस्थ मनुष्य (तुभ्यम्) आपके लिये (बलिम्) खाने और पीने योग्यादि पदार्थों के समूह को (आ, भरन्ति) धारण करते हैं और हे (अग्ने) पवित्र कार्य्य करनेवाले ! आप (भन्दिष्ठस्य) अत्यन्त श्रेष्ठ आचरण करनेवाले की (सुमतिम्) श्रेष्ठ बुद्धि को (आ, चिकिद्धि) विशेष करके जानिये और यह (ते) आपका (महि) सत्कार करने योग्य (बृहत्) बड़ा (भद्रम्) सेवन करने योग्य सुख देनेवाला (शर्म) गृह वा सुख हो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जिससे अतिथि जन सब मनुष्यों के सत्य उपदेश से परम उपकार को करते हैं, इससे वे अन्न, पान, स्थान, प्रिय वचन और धन आदि से सत्कार करने योग्य होते हैं ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे यविष्ठाऽग्ने! यतस्त्वमन्तित उत दूरादागत्य सर्वान् सत्यमुपदिशसि तस्मात् क्षितयस्तुभ्यं बलिमाभरन्ति। हे अग्ने! त्वं भन्दिष्ठस्य सुमतिमा चिकिद्धीदं ते महि बृहद्भद्रं शर्मास्तु ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तुभ्यम्) (भरन्ति) धरन्ति (क्षितयः) गृहस्था मनुष्याः (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (बलिम्) भक्ष्यभोज्यादिपदार्थसमुदायम् (अग्ने) विद्युद्वद्व्याप्तविद्य (अन्तितः) समीपतः (आ) (उत) (दूरात्) (आ) (भन्दिष्ठस्य) अतिशयेन कल्याणाचरणस्य (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (चिकिद्धि) विजानीहि (बृहत्) महत् (ते) तव (अग्ने) पवित्रकर्त्तः (महि) पूजनीयम् (शर्म) गृहं सुखं वा (भद्रम्) सेवनीयसुखप्रदम् ॥१०॥
भावार्थभाषाः - यस्मादतिथयः सर्वेषां मनुष्याणां सत्योपदेशेन परममुपकारं कुर्वन्ति तस्मात्तेऽन्नपानस्थानप्रियवचनधनादिना सत्कर्त्तव्या भवन्ति ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा अतिथी सर्व माणसांना सत्याचा उपदेश करून महान उपकार करतात तेव्हा त्यांचे खान, पान, स्थान, प्रिय वचन व धन इत्यादींनी सत्कार करावा. ॥ १० ॥