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स सद्म॒ परि॑ णीयते॒ होता॑ म॒न्द्रो दिवि॑ष्टिषु। उ॒त पोता॒ नि षी॑दति ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa sadma pari ṇīyate hotā mandro diviṣṭiṣu | uta potā ni ṣīdati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। सद्म॑। परि॑। नी॒य॒ते॒। होता॑। म॒न्द्रः। दिवि॑ष्टिषु। उ॒त। पोता॑। नि। सी॒द॒ति॒॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:9» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:9» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (मन्द्रः) आनन्द का दाता (होता) दानकर्त्ता और (उत) भी (पोता) पवित्र करनेवाला (दिविष्टिषु) पक्षेष्टि आदि उत्तम व्यवहारों के निमित्त (सद्म) बैठते हैं जिसमें उस गृह में (नि, सीदति) बैठता है (सः) वह विद्वान् विद्वानों को (परि) सब प्रकार (नीयते) प्राप्त होता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - जहाँ पवित्र आनन्दयुक्त और विद्या आदि के देनेवाले लोग हैं, वहीं सम्पूर्ण विनय होता है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्याः ! यो मन्द्रो होता उतापि पोता दिविष्टिषु सद्म निषीदति स विद्वद्भिः परिणीयते ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) विद्वान् (सद्म) सीदन्ति यस्मिँस्तत् (परि) सर्वतः (नीयते) (होता) दाता (मन्द्रः) आनन्दप्रदः (दिविष्टिषु) पक्षेष्ट्यादिसद्व्यवहारेषु (उत) अपि (पोता) पवित्रकर्त्ता (नि) (सीदति) ॥३॥
भावार्थभाषाः - यत्र पवित्रा आनन्दिता विद्यादिदातारो जनास्सन्ति तत्रैव समग्रो विनयो भवति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेथे पवित्र, आनंदयुक्त व विद्यादान करणारे लोक असतात तेथे संपूर्ण विनय असतो. ॥ ३ ॥