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स वे॑द दे॒व आ॒नमं॑ दे॒वाँ ऋ॑ताय॒ते दमे॑। दाति॑ प्रि॒याणि॑ चि॒द्वसु॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa veda deva ānamaṁ devām̐ ṛtāyate dame | dāti priyāṇi cid vasu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। वे॒द॒। दे॒वः। आ॒ऽनम॑म्। दे॒वान्। ऋ॒त॒ऽय॒ते। दमे॑। दाति॑। प्रि॒याणि॑। चि॒त्। वसु॑॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:8» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:8» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अग्नि के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जिसको यथार्थवक्ता (देवः) कामना करता हुआ विद्वान् जन (वेद) जानता है (सः) वह (देवान्) पृथिवी आदि पदार्थ वा विद्वानों के (आनमम्) सब प्रकार सत्कार करने को (ऋतायते) सत्य के सदृश आचरण और (दमे) गृह में (चित्) भी (प्रियाणि) सुन्दर (वसु) द्रव्यों को (दाति) देता है, ऐसा जानो ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! सम्पूर्ण पृथिवी आदि श्रेष्ठ पदार्थों के बीच जो अग्निदेव है, उससे इस सब ऐश्वर्य का देनेवाला बड़ा देव जानो ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरग्निविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यमाप्तो देवो वेद स देवानानममृतायते दमे चित्प्रियाणि वसु दातीति यूयं विजानीत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) विद्युदग्निः (वेद) जानाति (देवः) कामयमानः (आनमम्) समन्तात् सत्कृतिं कर्त्तुम् (देवान्) पृथिव्यादीन् विदुषो वा (ऋतायते) ऋतमिव करोति (दमे) गृहे (दाति) ददाति। अत्राऽभ्यासलोपः। (प्रियाणि) कमनीयानि (चित्) अपि (वसु) वसूनि द्रव्याणि ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! सर्वेषां पृथिव्यादीनां दिव्यानां पदार्थानां योऽग्निर्देवोऽस्ति तस्मादिमं सर्वैश्वर्यप्रदं महादेवं बुध्यध्वम् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! संपूर्ण पृथ्वी इत्यादी दिव्य पदार्थांमध्ये जो अग्निदेव आहे त्यालाच ऐश्वर्यप्रदाता महादेव माना. ॥ ३ ॥