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स॒सस्य॒ यद्वियु॑ता॒ सस्मि॒न्नूध॑न्नृ॒तस्य॒ धाम॑न्र॒णय॑न्त दे॒वाः। म॒हाँ अ॒ग्निर्नम॑सा रा॒तह॑व्यो॒ वेर॑ध्व॒राय॒ सद॒मिदृ॒तावा॑ ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sasasya yad viyutā sasminn ūdhann ṛtasya dhāman raṇayanta devāḥ | mahām̐ agnir namasā rātahavyo ver adhvarāya sadam id ṛtāvā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒सस्य॑। यत्। विऽयु॑ता। सस्मि॑न्। ऊध॑न्। ऋ॒तस्य॑। धाम॑न्। र॒णय॑न्त। दे॒वाः। म॒हान्। अ॒ग्निः। नम॑सा। रा॒तऽह॑व्यः। वेः। अ॒ध्व॒राय॑। सद॑म्। इत्। ऋ॒तऽवा॑॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:7» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:7» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अग्निविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (देवाः) विद्वान् लोग (नमसा) पृथिवी आदि अन्न के साथ वर्त्तमान (रातहव्यः) जिसने ग्रहण करने योग्य पदार्थ दिया (ऋतावा) जो जल का विभाग करनेवाला (महान्) महान् (अग्निः) बिजुली रूप अग्नि (वेः) पक्षी के सदृश (सदम्) प्राप्त होने योग्य स्थान को प्राप्त कराता है (यत्) जिस अग्नि में (सस्मिन्) सब (ऊधन्) अवयव में और (ऋतस्य) सत्य के (धामन्) स्थान में (ससस्य) स्वप्नसम्बन्ध से (वियुता) वियुक्त अर्थात् विना स्वप्न वस्तुएँ (रणयन्त) शब्द करती हैं, उसको (अध्वराय) अहिंसनीय व्यवहार के लिये (इत्) जानते ही हैं, वे सत्य के जाननेवाले होते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे बुद्धिमान् पुरुषो ! जो अग्नि शरीर आदि में और निद्रा में प्रसिद्ध होता है, वह बड़ा होने से सर्वत्र व्यापक है ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरग्निविषयमाह ॥

अन्वय:

ये देवा विद्वांसो नमसा सह वर्त्तमानो रातहव्य ऋतावा महानग्निर्वेरिव सदं प्रापयति यद्यो सस्मिन्नूधन्नृतस्य धामन्त्ससस्य वियुता रणयन्त तमध्वराय विदन्तीत्ते सत्यविदो जायन्ते ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ससस्य) स्वप्नस्य (यत्) यस्मिन् (वियुता) वियुक्तानि (सस्मिन्) सर्वस्मिन्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति लोपः। (ऊधन्) ऊधन्यवयवे (ऋतस्य) सत्यस्य (धामन्) धामनि (रणयन्त) शब्दयन्ति (देवाः) विद्वांसः (महान्) अतिविस्तीर्णः (अग्निः) विद्युत् (नमसा) अन्नाख्येन पृथिव्यादिना सह (रातहव्यः) रातं ग्रहीतुं योग्यं हव्यं दत्तं येन सः (वेः) पक्षिणः (अध्वराय) अहिंसनीयाय व्यवहाराय (सदम्) प्राप्तव्यम् (इत्) एव (ऋतावा) ऋतस्य जलस्य विभाजकः ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे विपश्चितो ! योऽग्निः शरीरादौ निद्रायां च प्रसिद्धो भवति स महत्त्वात् सर्वत्र व्याप्तोऽस्ति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे बुद्धिमान पुरुषांनो! जो अग्नी शरीर इत्यादीमध्ये व निद्रेमध्ये प्रसिद्ध असतो, तो मोठा असल्यामुळे सर्वत्र व्यापक आहे ॥ ७ ॥