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स॒द्यो जा॒तस्य॒ ददृ॑शान॒मोजो॒ यद॑स्य॒ वातो॑ अनु॒वाति॑ शो॒चिः। वृ॒णक्ति॑ ति॒ग्माम॑त॒सेषु॑ जि॒ह्वां स्थि॒रा चि॒दन्ना॑ दयते॒ वि जम्भैः॑ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sadyo jātasya dadṛśānam ojo yad asya vāto anuvāti śociḥ | vṛṇakti tigmām ataseṣu jihvāṁ sthirā cid annā dayate vi jambhaiḥ ||

पद पाठ

स॒द्यः। जा॒तस्य॑। ददृ॑शानम्। ओजः॑। यत्। अ॒स्य॒। वातः॑। अ॒नु॒ऽवाति॑। शो॒चिः। वृ॒णक्ति॑। ति॒ग्माम्। अ॒त॒सेषु॑। जि॒ह्वाम्। स्थि॒रा। चि॒त्। अन्ना॑। द॒य॒ते॒। वि। जम्भैः॑॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:7» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:7» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! (अस्य) इस (सद्यः) शीघ्र (जातस्य) उत्पन्न हुए विद्युत् रूप अग्निप्रताप के (यत्) जिस (ददृशानम्) देखने योग्य (ओजः) वेगयुक्त बल के (वातः) वायु (अनुवाति) पीछे चलता है, जो इस साधारण अग्नि को (शोचिः) प्रज्वलित लपट को (अतसेषु) वृक्ष आदिकों में (तिग्माम्) तीव्र गति को और (जिह्वाम्) वाणी को (वृणक्ति) सेवन करता है और जो (वि, जम्भैः) गमनों के आक्षेपों से (चित्) भी (स्थिरा) दृढ़ (अन्ना) भोजन करने योग्य पदार्थों को (दयते) देता है, उस बिजुली रूप अग्नि को जान के कार्यों में प्रयुक्त करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो शिल्पीजन पदार्थों से बिजुली को उत्पन्न करें तो वह बिजुली देखने योग्य पराक्रम और वेग को दिखा के अनेक प्रकार के ऐश्वर्य्यों को देती है ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! अस्य सद्यो जातस्य यद्ददृशानमोजो वातोऽनुवाति यदस्य शोचिरतसेषु तिग्मां जिह्वां वृणक्ति यो विजम्भैश्चित्स्थिरा अन्ना दयते तं विद्युतमग्निं विज्ञाय संप्रयुङ्ध्वम् ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सद्यः) क्षिप्रम् (जातस्य) उत्पन्नस्य (ददृशानम्) द्रष्टव्यम् (ओजः) वेगवद्बलम् (यत्) (अस्य) (वातः) वायुः (अनुवाति) (शोचिः) प्रदीप्तम् (वृणक्ति) सम्भजति (तिग्माम्) तीव्रां गतिम् (अतसेषु) वृक्षादिषु (जिह्वाम्) वाचम् (स्थिरा) स्थिराणि (चित्) अपि (अन्ना) अत्तव्यानि (दयते) ददाति (वि) (जम्भैः) गत्याक्षेपैः ॥१०॥
भावार्थभाषाः - यदि शिल्पिनः पदार्थेभ्यो विद्युतं जनयेयुस्तर्हि सा दर्शनीयं पराक्रमं वेगं च दर्शयित्वा विविधान्यैश्वर्य्याणि ददाति ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा जे कारागीर पदार्थांतून विद्युत उत्पन्न करतात तेव्हा ती विद्युत दर्शनीय असून पराक्रम व वेग दाखवून अनेक प्रकारचे ऐश्वर्य देते. ॥ १० ॥