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परि॒ त्मना॑ मि॒तद्रु॑रेति॒ होता॒ग्निर्म॒न्द्रो मधु॑वचा ऋ॒तावा॑। द्रव॑न्त्यस्य वा॒जिनो॒ न शोका॒ भय॑न्ते॒ विश्वा॒ भुव॑ना॒ यदभ्रा॑ट् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari tmanā mitadrur eti hotāgnir mandro madhuvacā ṛtāvā | dravanty asya vājino na śokā bhayante viśvā bhuvanā yad abhrāṭ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परि॑। त्मना॑। मि॒तऽद्रुः॑। ए॒ति॒। होता॑। अ॒ग्निः। म॒न्द्रः। मधु॑ऽवचाः। ऋ॒तऽवा॑। द्रव॑न्ति। अ॒स्य॒। वा॒जिनः॑। न। शोकाः॑। भय॑न्ते। विश्वा॑। भुव॑ना। यत्। अभ्रा॑ट्॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:6» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:4» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वरविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (अस्य) इस सूर्य के (वाजिनः) घोड़े के (न) तुल्य (शोकाः) प्रकाश (द्रवन्ति) दौड़ते हैं जो (अभ्राट्) दीप्त होता है (यत्) जिससे (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवना) जीवों के ठहरने के अधिकरण लोकलोकान्तर (भयन्ते) कँपते हैं, उस प्रकार वर्त्तमान जो पुरुष (ऋतावा) सत्य का विभाग करनेवाला (मधुवचाः) मधुरवाणीयुक्त (अग्निः) अग्नि के सदृश (होता) यज्ञ करनेवाला (मन्द्रः) आनन्ददाता वा आनन्दित (मितद्रुः) परिमाणपूर्वक चलनेवाला (त्मना) अपने से (परि, एति) प्राप्त होता है, वह सुख को प्राप्त होता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जिस परमात्मा का सब जगह प्रकाश और जिससे सब डरते हैं, उसके विज्ञान के लिये सत्य का आचरण और योगाभ्यास सब को करना चाहिये ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरविषयमाह ॥

अन्वय:

यथास्य सूर्य्यस्य वाजिनो न शोका द्रवन्ति योऽभ्राड् यद्विश्वा भुवना भयन्ते तद्वद्वर्त्तमान ऋतावा मधुवचा अग्निरिव होता मन्द्रो मितद्रुस्त्मना पर्य्येति सः सर्वं सुखं प्राप्नोति ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (परि) (त्मना) आत्मना (मितद्रुः) यो मितं द्रवति गच्छति सः (एति) प्राप्नोति (होता) यज्ञकर्त्ता (अग्निः) पावक इव (मन्द्रः) आनन्दप्रद आनन्दितः (मधुवचाः) मधुरवाक् (ऋतावा) सत्यस्य विभाजकः (द्रवन्ति) धावन्ति (अस्य) (वाजिनः) अश्वाः (न) इव (शोकाः) प्रकाशाः (भयन्ते) बिभ्यति। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदं शपो लुक् न। (विश्वा) सर्वाणि (भुवना) भूताधिकरणानि (यत्) यस्मात् (अभ्राट्) भ्राजते ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यस्य परमात्मनः सर्वत्र प्रकाशो यस्मात्सर्वे बिभ्यति तस्य विज्ञानाय सत्याचारो योगाभ्यासश्च सर्वैः कर्त्तव्यः ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! ज्या परमेश्वराचा सर्वत्र प्रकाश आहे व ज्याला सर्व घाबरतात, त्याला जाणण्यासाठी सर्वांनी सत्याचरण व योगाभ्यास करावा. ॥ ५ ॥