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शुना॑सीरावि॒मां वाचं॑ जुषेथां॒ यद्दि॒वि च॒क्रथुः॒ पयः॑। तेने॒मामुप॑ सिञ्चतम् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śunāsīrāv imāṁ vācaṁ juṣethāṁ yad divi cakrathuḥ payaḥ | tenemām upa siñcatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शुना॑सीरौ। इ॒माम्। वाच॑म्। जु॒षे॒था॒म्। यत्। दि॒वि। च॒क्रथुः॑। पयः॑। तेन॑। इ॒माम्। उप॑। सि॒ञ्च॒त॒म् ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:57» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शुनासीरौ) क्षेत्र के स्वामी और भृत्य ! आप दोनों (यत्) जिस (इमाम्) इस कृषिविद्या की प्रकाश करनेवाली (वाचम्) वाणी और (पयः) जल को (दिवि) कृषिविद्या के प्रकाश में (चक्रथुः) करते हैं उनकी (जुषेथाम्) सेवा करो (तेन) इससे (इमाम्) इस भूमि को (उप, सिञ्चतम्) सींचो ॥५॥
भावार्थभाषाः - खेती करनेवाले जन प्रथम खेती के करने की विद्या को ग्रहण करके पश्चात् यथायोग्य खेती कर धन और धान्य से युक्त सदा हों ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे शुनासीरौ ! युवां यद्यामिमां वाचं पयश्च दिवि चक्रथुस्ते जुषेथां तेनेमामुप सिञ्चतम् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शुनासीरौ) क्षेत्रपतिभृत्यौ (इमाम्) कृषिविद्याप्रकाशिकां (वाचम्) वाणीम् (जुषेथाम्) सेवेथाम् (यत्) यम् (दिवि) कृषिविद्याप्रकाशे (चक्रथुः) (पयः) उदकम् (तेन) (इमाम्) भूमिम् (उप) (सिञ्चतम्) ॥५॥
भावार्थभाषाः - कृषीवलाः पूर्वं कृषिविद्यां गृहीत्वा पुनर्यथायोग्यां कृषिं कृत्वा धनधान्ययुक्ताः सदा भवन्तु ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - शेतकऱ्यांनी प्रथम कृषिविद्या ग्रहण करावी व नंतर यथायोग्य शेती करून सदैव धनधान्यांनी युक्त असावे. ॥ ५ ॥