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क्षेत्र॑स्य पते॒ मधू॑मन्तमू॒र्मिं धे॒नुरि॑व॒ पयो॑ अ॒स्मासु॑ धुक्ष्व। म॒धु॒श्चुतं॑ घृ॒तमि॑व॒ सुपू॑तमृ॒तस्य॑ नः॒ पत॑यो मृळयन्तु ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kṣetrasya pate madhumantam ūrmiṁ dhenur iva payo asmāsu dhukṣva | madhuścutaṁ ghṛtam iva supūtam ṛtasya naḥ patayo mṛḻayantu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्षे॑त्रस्य। प॒ते॒। मधु॑ऽमन्तम्। ऊ॒र्मिम्। धे॒नुःऽइव। पयः॑। अ॒स्मासु॑। धु॒क्ष्व॒। म॒धु॒ऽश्चुत॑म्। घृतम्ऽइ॑व। सुऽपू॑तम्। ऋ॒तस्य॑। नः॒। पत॑यः। मृ॒ळ॒य॒न्तु॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:57» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:9» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (क्षेत्रस्य) अन्न के उत्पन्न होने की आधारभूमि के (पते) स्वामी जैसे (ऋतस्य) सत्य के (पतयः) स्वामी (घृतमिव) घृत के सदृश (मधुश्चुतम्) मधुर आदि गुणों से युक्त (सुपूतम्) उत्तम प्रकार पवित्र विज्ञान को प्राप्त होकर (नः) हम लोगों को (मृळयन्तु) सुख दीजिये तथा (धेनुरिव) गौ के सदृश (मधुमन्तम्) मधुर आदि गुणों से युक्त (ऊर्मिम्) जलधारा और (पयः) दुग्ध को (अस्मासु) हम लोगों में (धुक्ष्व) पूर्ण करो ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे बुद्धिमान् खेती करनेवाले जन सुन्दर शुद्ध अन्नों को उत्पन्न करके सब को आनन्द देते हैं, वैसे ही खेती करनेवाले जनों की उत्तम प्रकार रक्षा करके सदा उत्साह युक्त करे ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे क्षेत्रस्य पते ! यथर्तस्य पतयो घृतमिव मधुश्चुतं सुपूतं विज्ञानं प्राप्य नो मृळयन्तु तथा धेनुरिव मधुमन्तमूर्मिं पयोऽस्मासु धुक्ष्व ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (क्षेत्रस्य) (पते) स्वामिन् (मधुमन्तम्) मधुरादिगुणयुक्तम् (ऊर्मिम्) जलधाराम् (धेनुरिव) (पयः) दुग्धम् (अस्मासु) (धुक्ष्व) पूर्णे कुरु (मधुश्चुतम्) मधुरादिगुणयुक्तम् (घृतमिव) (सुपूतम्) सुष्ठु पवित्रम् (ऋतस्य) (नः) अस्मान् (पतयः) स्वामिनः (मृळयन्तु) ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा धीमन्तः कृषीवलाः सुन्दराणि शुद्धान्यन्नान्युत्पाद्य सर्वानानन्दयन्ति तथैव कृषीवलान् संरक्ष्य सदैवोत्साहयेत् ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे बुद्धिमान शेतकरी उत्तम शुद्ध अन्न उत्पन्न करून सर्वांना आनंदित करतात. तसेच शेतकऱ्यांचे उत्तम प्रकारे रक्षण करून त्यांना सदैव उत्साहित करावे. ॥ २ ॥