प्र प॒स्त्या॒३॒॑मदि॑तिं॒ सिन्धु॑म॒र्कैः स्व॒स्तिमी॑ळे स॒ख्याय॑ दे॒वीम्। उ॒भे यथा॑ नो॒ अह॑नी नि॒पात॑ उ॒षासा॒नक्ता॑ करता॒मद॑ब्धे ॥३॥
pra pastyām aditiṁ sindhum arkaiḥ svastim īḻe sakhyāya devīm | ubhe yathā no ahanī nipāta uṣāsānaktā karatām adabdhe ||
प्र। प॒स्त्या॑म्। अदि॑तिम्। सिन्धु॑म्। अ॒र्कैः। स्व॒स्तिम्। ई॒ळे॒। स॒ख्याय॑। दे॒वीम्। उ॒भे इति॑। यथा॑। नः॒। अह॑नी इति॑। नि॒ऽपातः॑। उ॒षसा॒नक्ता॑। क॒र॒ता॒म्। अद॑ब्धे॒ इति॑ ॥३॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब विद्वानों के विषय में गृहस्थ के कर्म को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वद्विषये गार्हस्थ्यकर्माह ॥
हे मनुष्या ! यथोभे अहनी उषासानक्ता अदब्धे करतां तथा नो निपातोऽहमर्कैरदितिं पस्त्यां सिन्धुं स्वस्ति सख्याय देवीं प्रेळे ॥३॥