वांछित मन्त्र चुनें

प्र ये धामा॑नि पू॒र्व्याण्यर्चा॒न्वि यदु॒च्छान्वि॑यो॒तारो॒ अमू॑राः। वि॒धा॒तारो॒ वि ते द॑धु॒रज॑स्रा ऋ॒तधी॑तयो रुरुचन्त द॒स्माः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra ye dhāmāni pūrvyāṇy arcān vi yad ucchān viyotāro amūrāḥ | vidhātāro vi te dadhur ajasrā ṛtadhītayo rurucanta dasmāḥ ||

पद पाठ

प्र। ये। धामा॑नि। पू॒र्व्याणि॑। अर्चा॑न्। वि। यत्। उ॒च्छान्। वि॒ऽयो॒तारः॑। अमू॑राः। वि॒ऽधा॒तारः॑। वि। ते॒। द॒धुः॒। अज॑स्राः। ऋ॒तऽधी॑तयः। रु॒रु॒च॒न्त॒। द॒स्माः ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:55» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ये) जो (पूर्व्याणि) प्राचीन जनों से प्रत्यक्ष किये गये (धामानि) जन्म, नाम, स्थानों का (प्र, अर्चान्) उत्तम सत्कार करें और (यत्) जो (अमूराः) नहीं मूर्ख (वियोतारः) विभाग करनेवाले जन प्राचीन जनों से प्रत्यक्ष किये गये जन्म, नाम, स्थानों का (वि, उच्छान्) विवास करावें और जो (अजस्राः) नहीं हिंसा करने और (ऋतधीतयः) सत्य के धारण करनेवाले (विधातारः) निर्माणकर्त्ता (दस्माः) दुःखों के विनाशक जन (रुरुचन्त) उत्तम प्रकार शोभित होते हैं (ते) वे निरन्तर (वि, दधुः) विधान करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो यथार्थवक्ता सब के सुख की इच्छा करनेवाले विद्वान् जन हों, वे ही सब के सब सुखों के करने योग्य होवें ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! ये पूर्व्याणि धामानि प्रार्चान् यद्येऽमूरा वियोतारः पूर्व्याणि धामानि व्युच्छान् येऽजस्रा ऋतधीतयो विधातारो दस्मा रुरुचन्त ते सततं वि दधुः ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (ये) (धामानि) जन्मनामस्थानानि (पूर्व्याणि) पूर्वैः साक्षात्कृतानि (अर्चान्) सत्कुर्य्युः (वि) (यत्) ये (उच्छान्) विवासयेयुः (वियोतारः) विभाजकाः (अमूराः) अमूढाः (विधातारः) निर्मातारः (वि) (ते) (दधुः) दध्युः (अजस्राः) अहिंसकाः (ऋतधीतयः) ऋतस्य धीतिर्धारणं येषान्ते (रुरुचन्त) सुशोभन्ते (दस्माः) दुःखानां विनाशकाः ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये आप्ताः सर्वेषां सुखमिच्छुका विद्वांसस्स्युस्त एव सर्वेषां सर्वाणि सुखानि कर्त्तुमर्हेयुः ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे आप्त सर्वांच्या सुखाची इच्छा करणारे विद्वान असतात तेच सर्वांचे सुख पाहू शकतात. ॥ २ ॥