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ये ते॒ त्रिरह॑न्त्सवितः स॒वासो॑ दि॒वेदि॑वे॒ सौभ॑गमासु॒वन्ति॑। इन्द्रो॒ द्यावा॑पृथि॒वी सिन्धु॑र॒द्भिरा॑दि॒त्यैर्नो॒ अदि॑तिः॒ शर्म॑ यंसत् ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ye te trir ahan savitaḥ savāso dive-dive saubhagam āsuvanti | indro dyāvāpṛthivī sindhur adbhir ādityair no aditiḥ śarma yaṁsat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। ते॒। त्रिः। अह॑न्। स॒वि॒त॒रिति॑। स॒वासः॑। दि॒वेऽदि॑वे। सौभ॑गम्। आ॒ऽसु॒वन्ति॑। इन्द्रः॑। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। सिन्धुः॑। अ॒त्ऽभिः। आ॒दि॒त्यैः। नः॒। अदि॑तिः। शर्मः॑। यं॒स॒त् ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:54» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:5» मन्त्र:6 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पदार्थोद्देश से ईश्वर की सेवा को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सवितः) परमेश्वर (ते) आपके (ये) जो (सवासः) उत्पन्न पदार्थ (अहन्) दिन में (दिवेदिवे) प्रतिदिन (सौभगम्) श्रेष्ठ ऐश्वर्य्य के होने को (त्रिः) तीन वार (आसुवन्ति) उत्पन्न कराते हैं तथा (अद्भिः) जलों और (आदित्यैः) और महीनों के साथ (इन्द्रः) सूर्य्य (द्यावापृथिवी) प्रकाश-भूमि और (सिन्धुः) समुद्र भी उत्पन्न कराते हैं, वह (अदितिः) खण्डरहित परमात्मा आप (नः) हम लोगों के लिये (शर्म) सुख को (यंसत्) दीजिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस जगदीश्वर की सृष्टि में हम लोग ऐश्वर्य्यवाले होते हैं और हम लोगों के रक्षा करनेवाले सम्पूर्ण पदार्थ हैं, उसी का हम लोग निरन्तर भजन करें ॥६॥ इस सूक्त में सविता, ईश्वर, विद्वान् और पदार्थों के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥६॥ यह चौवनवाँ सूक्त और पाँचवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ पदार्थोद्देशेनेश्वरसेवनमाह ॥

अन्वय:

हे सवितर्जगदीश्वर ! ते तव ये सवासोऽहन् दिवेदिवे सौभगं त्रिरासुवन्ति। अद्भिरादित्यैस्सह इन्द्रो द्यावापृथिवी सिन्धुश्चासुवन्ति सोऽदितिर्भवान्नः शर्म यंसत् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) (ते) तव (त्रिः) (अहन्) अहनि (सवितः) परमेश्वर (सवासः) उत्पन्नाः पदार्थाः (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् (सौभगम्) सुभगस्य श्रेष्ठैश्वर्य्यस्य भावम् (आसुवन्ति) उत्पादयन्ति (इन्द्रः) सूर्य्यः (द्यावापृथिवी) प्रकाशभूमी (सिन्धुः) (अद्भिः) जलैः (आदित्यैः) मासैः (नः) अस्मभ्यम् (अदितिः) अखण्डितः परमात्मा (शर्म) सुखम् (यंसत्) प्रदद्यात् ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यस्य जगदीश्वरस्य सृष्टौ वयमत्यन्तैश्वर्य्यवन्तो भवामोऽस्माकरक्षकाः सर्वे पदार्थाः सन्ति तमेव वयं सततं भजेमेति ॥६॥ अत्र सवित्रीश्वरविद्वत्पदार्थगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥६॥ इति चतुःपञ्चाशत्तमं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्या जगदीश्वराच्या सृष्टीत आम्ही ऐश्वर्यवान होतो व सर्व पदार्थांमुळे आमचे रक्षण होते त्याचे आम्ही सतत भजन करावे. ॥ ६ ॥