प्रति॑ भ॒द्रा अ॑दृक्षत॒ गवां॒ सर्गा॒ न र॒श्मयः॑। ओषा अ॑प्रा उ॒रु ज्रयः॑ ॥५॥
prati bhadrā adṛkṣata gavāṁ sargā na raśmayaḥ | oṣā aprā uru jrayaḥ ||
प्रति॑। भ॒द्राः। अ॒दृ॒क्ष॒त॒। गवा॑म्। सर्गाः॑। न। र॒श्मयः॑। आ। उ॒षाः। अ॒प्राः॒। उ॒रु। ज्रयः॑ ॥५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब स्त्रियों की उत्तम व्यवहारों में प्रशंसा कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ स्त्रीणामुत्तमव्यवहारेषु प्रशंसामाह ॥
हे मनुष्या ! या उरु ज्रयो रश्मयो न भद्रा गवां सर्गाः प्रत्यदृक्षत यथोषास्ता आऽप्रास्तथा स्त्री भवेत् ॥५॥