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देवता: उषाः ऋषि: वामदेवो गौतमः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

प्रति॑ भ॒द्रा अ॑दृक्षत॒ गवां॒ सर्गा॒ न र॒श्मयः॑। ओषा अ॑प्रा उ॒रु ज्रयः॑ ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prati bhadrā adṛkṣata gavāṁ sargā na raśmayaḥ | oṣā aprā uru jrayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रति॑। भ॒द्राः। अ॒दृ॒क्ष॒त॒। गवा॑म्। सर्गाः॑। न। र॒श्मयः॑। आ। उ॒षाः। अ॒प्राः॒। उ॒रु। ज्रयः॑ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:52» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब स्त्रियों की उत्तम व्यवहारों में प्रशंसा कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (उरु) बहुत (ज्रयः) अत्यन्त तेजःस्वरूप मण्डल को (रश्मयः) किरणों के (न) सदृश (भद्राः) कल्याण करनेवाली (गवाम्) पृथिवियों की (सर्गाः) सृष्टियाँ, रचना (प्रति, अदृक्षत) प्रति समय देखी जाती हैं जैसे (उषाः) प्रभातवेला उनको (आ, अप्राः) व्याप्त होती है, वैसे स्त्री हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो स्त्रियाँ किरणों के समान उत्तम व्यवहारों का प्रकाश कराती हैं, वे निरन्तर कल्याण के लिये कुल की उन्नति करनेवाली होती हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ स्त्रीणामुत्तमव्यवहारेषु प्रशंसामाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! या उरु ज्रयो रश्मयो न भद्रा गवां सर्गाः प्रत्यदृक्षत यथोषास्ता आऽप्रास्तथा स्त्री भवेत् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रति) (भद्राः) कल्याणकर्यः (अदृक्षत) दृश्यन्ते (गवाम्) पृथिवीनाम् (सर्गाः) सृष्टयः (न) इव (रश्मयः) किरणाः (आ) (उषाः) प्रभातवेलाः (अप्राः) प्राति व्याप्नोति (उरु) बहु (ज्रयः) अतितेजोमय ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । याः स्त्रियो रश्मिवदुत्तमान् व्यवहारान् प्रकाशयन्ति ताः सततं कल्याणाय कुलोन्नतिकर्य्यो जायन्ते ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या स्त्रिया किरणांप्रमाणे उत्तम व्यवहार करतात त्या निरंतर कल्याणासाठी कुलाची उन्नती करणाऱ्या असतात. ॥ ५ ॥