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या॒व॒यद्द्वे॑षसं त्वा चिकि॒त्वित्सू॑नृतावरि। प्रति॒ स्तोमै॑रुभूत्स्महि ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yāvayaddveṣasaṁ tvā cikitvit sūnṛtāvari | prati stomair abhutsmahi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य॒वयत्ऽद्वे॑षसम्। त्वा॒। चि॒कि॒त्वित्। सू॒नृ॒ता॒ऽव॒रि॒। प्रति॑। स्तोमैः॑। अ॒भू॒त्स्म॒हि॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:52» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर स्त्री गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (चिकित्वित्) जनाने और (सूनृतावरि) सत्यवाणी का प्रकाश करनेवाली स्त्री ! हम लोग (स्तोमैः) प्रशंसाओं से (यावयद्द्वेषसम्) द्वेष करनेवाले को पृथक् करानेवाली (त्वा) तुझको (प्रति, अभूत्स्महि) जानें ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो कभी द्वेष और द्वेष करनेवाले के सङ्ग को नहीं करती और सत्यवाणी और प्रशंसायुक्त है, वही स्त्री श्रेष्ठ है ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स्त्रीगुणानाह ॥

अन्वय:

हे चिकित्वित् सूनृतावरि स्त्रि ! वयं स्तोमैर्यावयद्द्वेषसं त्वा प्रत्यभूत्स्महि ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यावयद्द्वेषसम्) यावयन्तं द्वेष्टारं द्वेषसं द्वेष्टारं पृथक्कारयन्तीम् (त्वा) त्वाम् (चिकित्वित्) ज्ञापयन्तीम् (सूनृतावरि) सत्यवाक्प्रकाशिके (प्रति) (स्तोमैः) प्रशंसाभिः (अभूत्स्महि) विजानीयाम ॥४॥
भावार्थभाषाः - या कदाचिद् द्वेषं द्वेष्टृसङ्गन्न करोति सत्यवाक् प्रशंसिता वर्त्तते सैव स्त्री वरा ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी कधी द्वेष करीत नाही व द्वेष करणाऱ्यांची संगत धरत नाही. जिची वाणी सत्य व प्रशंसित असते तीच स्त्री श्रेष्ठ असते. ॥ ४ ॥