या॒व॒यद्द्वे॑षसं त्वा चिकि॒त्वित्सू॑नृतावरि। प्रति॒ स्तोमै॑रुभूत्स्महि ॥४॥
yāvayaddveṣasaṁ tvā cikitvit sūnṛtāvari | prati stomair abhutsmahi ||
य॒वयत्ऽद्वे॑षसम्। त्वा॒। चि॒कि॒त्वित्। सू॒नृ॒ता॒ऽव॒रि॒। प्रति॑। स्तोमैः॑। अ॒भू॒त्स्म॒हि॒ ॥४॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर स्त्री गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स्त्रीगुणानाह ॥
हे चिकित्वित् सूनृतावरि स्त्रि ! वयं स्तोमैर्यावयद्द्वेषसं त्वा प्रत्यभूत्स्महि ॥४॥