उ॒त सखा॑स्य॒श्विनो॑रु॒त मा॒ता गवा॑मसि। उ॒तोषो॒ वस्व॑ ईशिषे ॥३॥
uta sakhāsy aśvinor uta mātā gavām asi | utoṣo vasva īśiṣe ||
उ॒त। सखा॑। अ॒सि॒। अ॒श्विनोः॑। उ॒त। मा॒ता। गवा॑म्। अ॒सि॒। उ॒त। उ॒षः॒। वस्वः॑। ई॒शि॒षे॒ ॥३॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे उष इव वर्त्तमाने स्त्रि ! त्वं पत्युः सखेवासि उताऽश्विनोः सखासि उत गवां मातासि उत वस्व ईशिषे ॥३॥