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प्रति॒ ष्या सू॒नरी॒ जनी॑ व्यु॒च्छन्ती॒ परि॒ स्वसुः॑। दि॒वो अ॑दर्शि दुहि॒ता ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

prati ṣyā sūnarī janī vyucchantī pari svasuḥ | divo adarśi duhitā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रति॑। स्या। सू॒नरी॑। जनी॑। वि॒ऽउ॒च्छन्ती॑। परि॑। स्वसुः॑। दि॒वः। अ॒द॒र्शि॒। दु॒हि॒ता ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:52» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सात ऋचावाले बावनवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में उषा की तुल्यता से स्त्री के गुणों का वर्णन करते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (दिवः) सुन्दर (स्वसुः) भगिनी की (जनी) उत्पन्न करनेवाली (सूनरी) उत्तम पहुँचाती और (परि, व्युच्छन्ती) सब ओर से निवास देती हुई (दुहिता) कन्या के सदृश वर्त्तमान प्रातर्वेला (प्रति, अदर्शि) एक के प्रति एक देखी जाती है (स्या) वह जागे हुए मनुष्य से देखने योग्य है ॥१॥
भावार्थभाषाः - वही स्त्री श्रेष्ठ, जो प्रातर्वेला के सदृश वर्त्तमान है ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोषर्वत्स्त्रीगुणानाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! या दिवः स्वसुर्जनी सूनरी परिव्युच्छन्ती दुहितेवोषाः प्रत्यदर्शि स्या जागृतेन मनुष्येण द्रष्टव्या ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रति) (स्या) सा (सूनरी) सुष्ठु नेत्री (जनी) जनयित्री (व्युच्छन्ती) निवासयन्ती (परि) (स्वसुः) भगिन्याः (दिवः) कमनीयायाः (अदर्शि) दृश्यते (दुहिता) कन्येव वर्त्तमाना ॥१॥
भावार्थभाषाः - सैव स्त्री वरा या उषर्वद्वर्त्तते ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात प्रभातवेळेप्रमाणे स्त्रियांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जी उषेप्रमाणे असते. तीच स्त्री श्रेष्ठ असते. ॥ १ ॥