वांछित मन्त्र चुनें

कु॒वित्स दे॑वीः स॒नयो॒ नवो॑ वा॒ यामो॑ बभू॒यादु॑षसो वो अ॒द्य। येना॒ नव॑ग्वे॒ अङ्गि॑रे॒ दश॑ग्वे स॒प्तास्ये॑ रेवती रे॒वदू॒ष ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kuvit sa devīḥ sanayo navo vā yāmo babhūyād uṣaso vo adya | yenā navagve aṅgire daśagve saptāsye revatī revad ūṣa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कु॒वित्। सः। दे॒वीः॒। स॒नयः॑। नवः॑। वा॒। यामः॑। ब॒भू॒यात्। उ॒ष॒सः॒। वः॒। अ॒द्य। येन॑। नव॑ऽग्वे। अङ्गि॑रे। दश॑ऽग्वे। स॒प्तऽआ॑स्ये। रे॒व॒तीः॒। रे॒वत्। ऊ॒ष ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:51» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पुरुषो ! (सः) वह (कुवित्) बड़े (यामः) चलनेवाले (नव) नवीन विद्या अवस्था युक्त आप (बभूयात्) निरन्तर हूजिये उसी प्रकार (रेवतीः) बहुत धन और शोभा से युक्त (सनयः) विभाग करनेवाली (देवीः) प्रकाशमान (उषसः) प्रभात वेलाओं के सदृश कन्या (वः) आप लोगों को (रेवत्) बहुत प्रशंसित धनवान् जैसे हो वैसे (ऊष) निरन्तर वसाती हैं (वा) अथवा (येना) जिस कारण (अद्य) आज दिन (नवग्वे) नौ गौओं से युक्त (दशग्वे) और दश गौवों से युक्त (अङ्गिरे) प्राणों के सदृश प्रिय पति के निमित्त (सप्तास्ये) सात प्राण मुख में जिसके उसमें वर्त्तमान हैं, इससे उनकी गृहाश्रम के लिये सेवा करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो अधिक विद्या, बल, तुल्य रूप, नवीन युवावस्थायुक्त और सुशील, विद्वान् अपने सदृश स्त्री को स्वीकार करे वह सुखी होवे और जो स्त्री पति की कामना करती हुई धन और विद्या की उन्नति करे वह सब मनुष्यों को सुखी करने के योग्य होवे ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे पुरुषाः ! स कुविद्यामो नवस्त्वं बभूयात् तद्वद् रेवतीः सनयो देवीरुषस इव वो रेवदूष वा येनाद्य नवग्वे दशग्वे अङ्गिरे सप्तास्ये वर्त्तन्तेऽतस्ता गृहाश्रमाय सेवध्वम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कुवित्) महान् (सः) (देवीः) (सनयः) विभक्त्र्यः (नवः) नवीनविद्यावयस्कः (वा) (यामः) यो याति सः (बभूयात्) भृशं भूयात् (उषसः) प्रभाताः (वः) युष्मान् (अद्य) (येना) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नवग्वे) नव गावो विद्यन्ते यस्य तस्मै (अङ्गिरे) प्राणवत्प्रिये पत्यौ (दशग्वे) दश गावो यस्य तस्मै (सप्तास्ये) सप्त प्राणा आस्ये यस्य तस्मिन् (रेवतीः) बहुधनशोभायुक्ताः (रेवत् ) बहुप्रशंसितधनवत् (ऊष) निवासयन्ति ॥४॥
भावार्थभाषाः - योऽधिकविद्याबलः समानरूपो नवयौवनः सुशीलो विद्वान् स्वसदृशीं स्त्रियमुपयच्छेत् स सुखी भूयात्। या स्त्री पतिं कामयमाना धनविद्योन्नतिं कुर्यात् सा सर्वान् मनुष्यान् सुखयितुमर्हेत् ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो अधिक विद्याबल, समानरूप, नवयुवक, सुशील, विद्वान आपल्यासारख्याच स्त्रीचा स्वीकार करतो तो सुखी होतो व पतीची कामना करणारी जी स्त्री धन व विद्येची उन्नती करते ती सर्व माणसांना सुखी करणारी असते. ॥ ४ ॥