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इ॒दमु॒ त्यत्पु॑रु॒तमं॑ पु॒रस्ता॒ज्ज्योति॒स्तम॑सो व॒युना॑वदस्थात्। नू॒नं दि॒वो दु॑हि॒तरो॑ विभा॒तीर्गा॒तुं कृ॑णवन्नु॒षसो॒ जना॑य ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

idam u tyat purutamam purastāj jyotis tamaso vayunāvad asthāt | nūnaṁ divo duhitaro vibhātīr gātuṁ kṛṇavann uṣaso janāya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒दम्। ऊ॒म् इति॑। त्यत्। पु॒रु॒ऽतम॑म्। पु॒रस्ता॑त्। ज्योतिः॑। तम॑सः। व॒युन॑ऽवत्। अ॒स्था॒त्। नू॒नम्। दि॒वः। दु॒हि॒तरः॑। वि॒ऽभा॒तीः। गा॒तुम्। कृ॒ण॒व॒न्। उ॒षसः॑। जना॑य ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:51» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:1» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ग्यारह ऋचावाले इक्कावनवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रातःकाल का वर्णन जिसमें ऐसे विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (त्यत्) सो (इदम्) यह (पुरुतमम्) अतिशय करके अनेक प्रकार का (ज्योतिः) तेज अर्थात् प्रकाश (वयुनावत्) प्रज्ञान के सदृश (तमसः) रात्रि से (पुरस्तात्) प्रथम (अस्थात्) वर्त्तमान है उस (दिवः) प्रकाश के सम्बन्ध से (विभातीः) प्रकाश करती हुई (दुहितरः) कन्याओं के सदृश वर्त्तमान (उषसः) प्रभातवेलाएँ (जनाय) मनुष्य आदि के लिये (गातुम्) भूमि को (उ) तो (नूनम्) निश्चय प्रकाशित (कृणवन्) करती हैं, यह जानो ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग पुरुषार्थ से सूर्य्य के प्रकाश के सदृश विज्ञान को प्राप्त होकर, अन्धकार की निवृत्ति के सदृश अविद्या का निवारण करके आनन्दित होओ ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रातर्वर्णनविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्यास्त्यदिदं पुरुतमं ज्योतिर्वयुनावत्तमसः पुरस्तादस्थात्तस्य दिवो विभातीर्दुहितर उषसो जनाय गातुमु नूनं प्रकाशितां कृणवन्निति विजानीत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) (उ) (त्यत्) तत् (पुरुतमम्) अतिशयेन बहुप्रकारम् (पुरस्तात्) पूर्वम् (ज्योतिः) तेजः (तमसः) रात्रेः (वयुनावत्) प्रज्ञानवत् (अस्थात्) वर्त्तते (नूनम्) (दिवः) प्रकाशस्य (दुहितरः) कन्या इव वर्त्तमानाः (विभातीः) प्रकाशयन्तः (गातुम्) पृथिवीम् (कृणवन्) कुर्वन्ति (उषसः) प्रभाताः (जनाय) मनुष्याद्याय ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! भवन्तः पुरुषार्थेन सूर्य्यप्रकाशवद्विज्ञानं प्राप्य तमोनिवृत्तिवदविद्यां निवार्य्याऽऽनन्दिता भवन्तु ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात उषा, स्त्री व पुरुष यांच्या गुण कर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही पुरुषार्थाने सूर्यप्रकाशाप्रमाणे विज्ञान प्राप्त करून अविद्येचा अंधकार निवारण करा व आनंदित व्हा. ॥ १ ॥