वांछित मन्त्र चुनें

प्र॒वाच्यं॒ वच॑सः॒ किं मे॑ अ॒स्य गुहा॑ हि॒तमुप॑ नि॒णिग्व॑दन्ति। यदु॒स्रिया॑णा॒मप॒ वारि॑व॒ व्रन्पाति॑ प्रि॒यं रु॒पो अग्रं॑ प॒दं वेः ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pravācyaṁ vacasaḥ kim me asya guhā hitam upa niṇig vadanti | yad usriyāṇām apa vār iva vran pāti priyaṁ rupo agram padaṁ veḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रऽवाच्य॑म्। वच॑सः। किम्। मे॒। अ॒स्य। गुहा॑। हि॒तम्। उप॑। नि॒णिक्। व॒द॒न्ति॒। यत्। उ॒स्रिया॑णाम्। अप॑। वाःऽइ॑व। व्रन्। पाति॑। प्रि॒यम्। रु॒पः। अग्र॑म्। प॒दम्। वेरिति॒ वेः॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:5» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:2» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रच्छक विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (मे) मेरे और (अस्य) इस जन के (वचसः) वचन के सम्बन्ध में (गुहा) बुद्धि में (हितम्) स्थित (प्रवाच्यम्) प्रकर्षता से कहने योग्य (निणिक्) अत्यन्त शुद्ध करनेवाले को (किम्) क्या (उप, वदन्ति) समीप में कहते हैं (यत्) जो (उस्रियाणाम्) गौओं के (वारिव) जल के सदृश वा (वेः) पक्षी के (अग्रम्) ऊँचे (पदम्) स्थान के सदृश (रुपः) पृथिवी के (प्रियम्) सुन्दर भाग को (अप, व्रन्) घेरता है, कौन इन दोनों का (पाति) पालन करता है ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! मेरी और इस जन की बुद्धि में वर्त्तमान चेतन क्या और कैसा है? जो पशुओं के पालन करनेवाला जल के सदृश रक्षा करता और सब से प्रिय देख पड़ता है। और जो आकाश में पक्षी के पैर के सदृश गुप्त है, उसके विज्ञान के लिये हम लोगों के प्रति आप लोग क्या कहते हो ॥८॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रच्छकविषयमाह ॥

अन्वय:

ये मेऽस्य च वचसो गुहा हितं प्रवाच्यं निणिक् किमुपवदन्ति यदुस्रियाणां वारिव वेरग्रं पदमिव रुपः प्रियमप व्रन् कश्चैतत् पाति ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रवाच्यम्) प्रकर्षेण वक्तुं योग्यम् (वचसः) वचनस्य (किम्) (मे) मम (अस्य) जनस्य (गुहा) बुद्धौ (हितम्) स्थितम् (उप) (निणिक्) नितरां शुन्धति (वदन्ति) (यत्) (उस्रियाणाम्) गवाम् (अप) (वारिव) जलमिव (व्रन्) अपवृणोति (पाति) (प्रियम्) कमनीयम् (रुपः) पृथिव्याः। रुप इति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (अग्रम्) (पदम्) (वेः) पक्षिणः ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! ममास्य च जनस्य बुद्धौ स्थितं चेतनं किमस्ति कीदृगस्ति यत्पशूनां पालकं जलमिव रक्षति सर्वेभ्यः प्रियं दृश्यते। यदाऽऽकाशे पक्षिणः पदमिव गुप्तमस्ति तद्विज्ञानायाऽस्मान् प्रति भवन्तः किं ब्रुवन्तु ॥८॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! माझ्या व या लोकांच्या बुद्धीत वर्तमान असलेला चेतन काय व कसा आहे? जो पशूंचा पालनकर्ता, जलाप्रमाणे रक्षक व सर्वांपेक्षा प्रिय आहे. आकाशात पक्ष्याच्या पायाप्रमाणे गुप्त आहे. त्याच्या विज्ञानासाठी तुम्ही आम्हाला काय सांगता? ॥ ८ ॥