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अ॒नि॒रेण॒ वच॑सा फ॒ल्ग्वे॑न प्र॒तीत्ये॑न कृ॒धुना॑तृ॒पासः॑। अधा॒ ते अ॑ग्ने॒ किमि॒हा व॑दन्त्यनायु॒धास॒ आस॑ता सचन्ताम् ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

anireṇa vacasā phalgvena pratītyena kṛdhunātṛpāsaḥ | adhā te agne kim ihā vadanty anāyudhāsa āsatā sacantām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒नि॒रेण। वच॑सा। फ॒ल्ग्वे॑न। प्र॒तीत्ये॑न। कृ॒धुना॑। अ॒तृ॒पासः॑। अध॑। ते। अ॒ग्ने॒। किम्। इ॒ह। व॒द॒न्ति। अ॒ना॒युधासः॑। अस॑ता। स॒च॒न्ता॒म्॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:5» मन्त्र:14 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब समाधाता के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् पुरुष ! जो (अनिरेण) नहीं रमने योग्य (प्रतीत्येन) प्रतीति में प्रसिद्ध हुए (फल्ग्वेन) बड़े (कृधुना) छोटे (वचसा) वचन से (अतृपासः) अतृप्त होते हुए (आसता) नहीं वर्त्तमान बल आदि से (अनायुधासः) विना शस्त्र-अस्त्रवालों के सदृश (इह) इस संसार वा इस जन्म में (किम्) क्या (वदन्ति) कहते हैं (अध) इसके अनन्तर (ते) आपके लिये किसे (सचन्ताम्) प्राप्त होवें, इसका उत्तर कहिये ॥१४॥
भावार्थभाषाः - जो श्रोता लोग उपदेश से उत्तर को प्राप्त हुए सन्तुष्ट न होवें, वे तब तक पूछें, जब कि समाधान को प्राप्त होवें, तब उस कर्म का आरम्भ करें ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ समाधातृविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने विद्वन् ! येऽनिरेण प्रतीत्येन फल्ग्वेन कृधुना वचसाऽतृपास आसताऽनायुधास इवेह किं वदन्त्यध ते किं सचन्तामित्यस्योत्तरं ब्रूत ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अनिरेण) अरमणीयेन (वचसा) वचनेन (फल्ग्वेन) महता (प्रतीत्येन) प्रतीतौ भवेन (कृधुना) ह्रस्वेनाऽल्पेन। (अतृपासः) अतृप्ताः सन्तः (अध) अथ। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (ते) (अग्ने) विद्वन् (किम्) (इह) अस्मिन् संसारे जन्मनि वा। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (वदन्ति) (अनायुधासः) अविद्यमानायुधाः (आसता) अवर्त्तमानेन। अत्रान्येषामपीत्याद्यचो दीर्घः। (सचन्ताम्) प्राप्नुवन्तु ॥१४॥
भावार्थभाषाः - यदि श्रोतार उपदेशेन प्राप्तोत्तराः सन्तुष्टा न स्युस्ते तावत्पृच्छन्तु यदा प्राप्तसमाधानाः स्युस्तदा तत्कर्म्मारभन्ताम् ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर श्रोते उपदेशाने उत्तर प्राप्त करून संतुष्ट होणार नसतील तोपर्यंत त्यांनी प्रश्न विचारावे. जेव्हा समाधान होईल तेव्हा त्या कार्याचा आरंभ करावा. ॥ १४ ॥