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का म॒र्यादा॑ व॒युना॒ कद्ध॑ वा॒ममच्छा॑ गमेम र॒घवो॒ न वाज॑म्। क॒दा नो॑ दे॒वीर॒मृत॑स्य॒ पत्नीः॒ सूरो॒ वर्णे॑न ततनन्नु॒षासः॑ ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kā maryādā vayunā kad dha vāmam acchā gamema raghavo na vājam | kadā no devīr amṛtasya patnīḥ sūro varṇena tatanann uṣāsaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

का। म॒र्यादा॑। व॒युना॑। कत्। ह॒। वा॒मम्। अच्छ॑। ग॒मे॒म॒। र॒घवः॑। न। वाज॑म्। क॒दा। नः॒। दे॒वीः। अ॒मृत॑स्य। पत्नीः॑। सूरः॑। वर्णे॑न। त॒त॒न॒न्। उ॒षसः॑॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:5» मन्त्र:13 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (नः) हम लोगों की (का) कौन (मर्य्यादा) प्रतिष्ठा और कौन (वयुना) कर्म्म हम लोग (रघवः) शीघ्र करनेवालों के (वाजम्) विज्ञान और (वामम्) उत्तम वस्तु को (कत् ह) कभी (अच्छ) उत्तम प्रकार (गमेम) प्राप्त होवें और (कदा) कब (सूरः) सूर्य्य (अमृतस्य) नाशरहित काल की (देवीः) प्रकाशमान (पत्नीः) स्त्रियों के सदृश वर्त्तमान (उषासः) प्रातर्वेलाओं के (न) सदृश आप (वर्णेन) तेज से (ततनन्) विस्तृत करेंगे ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्य लोग यथार्थवादी विद्वान् से मनुष्य के करने योग्य कर्म्मों और प्राप्त होने योग्य स्थान को पूछें कि आप सूर्य्य में प्रातःकाल के सदृश हम लोगों को कब विद्वान् करोगे? ऐसा पूछें ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! नोऽस्माकं का मर्य्यादा कानि वयुना रघवो वाजं वामं कद्धाच्छ गमेम कदा सूरोऽमृतस्य देवीः पत्नीरुषासो न इव वर्णेन ततनन् ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (का) (मर्य्यादा) (वयुना) कर्माणि (कत्) कदा (ह) खलु (वामम्) प्रशस्तवस्तु (अच्छ) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (गमेम) प्राप्नुयाम (रघवः) सद्यः कारिणः (न) इव (वाजम्) विज्ञानम् (कदा) (नः) अस्मान् (देवीः) देदीप्यमानाः (अमृतस्य) नाशरहितस्य (पत्नीः) स्त्रीवद्वर्त्तमानाः (सूरः) सूर्य्यः (वर्णेन) (ततनन्) तनिष्यन्ति (उषासः) प्रभातान् ॥१३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्या आप्तविद्वांसं मनुष्येण कर्त्तव्यानि कर्माणि प्रापणीयं पदं पृच्छेयुर्भवान् सूर्य्ये प्रातर्वेलामिवाऽस्मान् कदा विदुषः सम्पादयिष्यतीति पृच्छेयुः ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी आप्त विद्वानांना योग्य कर्म व योग्य पदा (अधिकारा) बाबत विचारावे व तुम्ही प्रातःकाळच्या सूर्याप्रमाणे आम्हाला केव्हा विद्वान कराल असेही विचारावे. ॥ १३ ॥