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ऋ॒तं वो॑चे॒ नम॑सा पृ॒च्छ्यमा॑न॒स्तवा॒शसा॑ जातवेदो॒ यदी॒दम्। त्वम॒स्य क्ष॑यसि॒ यद्ध॒ विश्वं॑ दि॒वि यदु॒ द्रवि॑णं॒ यत्पृ॑थि॒व्याम् ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛtaṁ voce namasā pṛcchyamānas tavāśasā jātavedo yadīdam | tvam asya kṣayasi yad dha viśvaṁ divi yad u draviṇaṁ yat pṛthivyām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋ॒तम्। वो॒चे॒। नम॑सा। पृ॒च्छ्यमा॑नः। तव॑। आ॒ऽशसा॑। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। यदि॑। इ॒दम्। त्वम्। अ॒स्य। क्ष॒य॒सि॒। यत्। ह॒। विश्व॑म्। दि॒वि। यत् । ऊ॒म् इति॑। द्रवि॑णम्। यत्। पृ॒थि॒व्याम्॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:5» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) ज्ञान से विशिष्ट (यदि) यदि आप (यत्) जो (ह) निश्चयकर (दिवि) प्रकाशमान परमात्मा वा सूर्य्य में (विश्वम्) सम्पूर्ण (द्रविणम्) द्रव्य और (यत्) जो (पृथिव्याम्) पृथिवी में (यत्) जो (उ) और वायु आदि में वर्त्तमान है और जिसमें (त्वम्) आप (क्षयसि) रहते हो उस (अस्य) इन (तव) आपके (आशसा) सब प्रकार प्रशंसित (नमसा) सत्कार से (पृच्छ्यमानः) पूँछा गया मैं तो (इदम्) इस (ऋतम्) सत्य को आपके प्रति (वोचे) कहूँ वा उपदेश करूँ ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो ब्रह्म सब स्थान में व्याप्त है और जिसमें सम्पूर्ण पदार्थ वसते हैं, उस सत्यस्वरूप का आप लोगों के प्रति मैं उपदेश करता हूँ, उसी की उपासना करो ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे जातवेदो ! यदि त्वं यद्ध दिवि विश्वं द्रविणं यत्पृथिव्यां यदु वाय्वादिषु वर्त्तते यत्र त्वं क्षयसि तस्यास्य तवाऽऽशसा नमसा पृच्छ्यमानोऽहं तर्हीदमृतं त्वां प्रतिवोचे ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतम्) सत्यम् (वोचे) वदेयमुपदिशेयं वा (नमसा) सत्कारेण (पृच्छ्यमानः) (तव) (आशसा) समन्तात् प्रशंसितेन (जातवेदः) जातप्रज्ञान (यदि) चेत् (इदम्) (त्वम्) (अस्य) (क्षयसि) निवससि (यत्) (ह) किल (विश्वम्) सर्वम् (दिवि) प्रकाशमाने परमात्मनि सूर्य्ये वा (यत्) (उ) (द्रविणम्) द्रव्यम् (यत्) (पृथिव्याम्) ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यद् ब्रह्म सर्वत्र व्याप्तमस्ति यत्र सर्वं वसति तत्सत्यस्वरूपं युष्मान् प्रत्यहमुपदिशामि तदेवोपाध्वम् ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जे ब्रह्म सर्व स्थानी व्याप्त आहे व ज्याच्यात संपूर्ण पदार्थ वसतात त्या सत्यस्वरूपाचा मी तुम्हाला उपदेश करतो, त्याचीच उपासना करा. ॥ ११ ॥