वांछित मन्त्र चुनें

अ॒यं वां॒ परि॑ षिच्यते॒ सोम॑ इन्द्राबृहस्पती। चारु॒र्मदा॑य पी॒तये॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayaṁ vām pari ṣicyate soma indrābṛhaspatī | cārur madāya pītaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒यम्। वा॒म्। परि॑। सि॒च्य॒ते॒। सोमः॑। इ॒न्द्रा॒बृ॒ह॒स्प॒ती॒ इति॑। चारुः॑। मदा॑य पी॒तये॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:49» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्राबृहस्पती) राजा और उपदेशक विद्वान् जनो ! (वाम्) आप दोनों के मुख में (मदाय) आनन्द के लिये (पीतये) पान करने को (चारुः) अति उत्तम (सोमः) बड़ी ओषधि का रस (अयम्) यह (परि) सब प्रकार से (सिच्यते) सींचा जाता है, इससे आप समर्थ होवें ॥२॥
भावार्थभाषाः - जैसे उत्तमान्न सेवन किया जाता, वैसे ही उत्तम रस भी सेवन किया जावे ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्राबृहस्पती ! वामास्ये मदाय पीतये चारुः सोमोऽयं परिषिच्यतेऽनेन भवान्त्समर्थो भवेत् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) (वाम्) युवयोः (परि) सर्वतः (सिञ्चते) (सोमः) महौषधिरसः (इन्द्राबृहस्पती) राजोपदेशकविद्वांसौ (चारुः) अत्युत्तमः (मदाय) आनन्दाय (पीतये) पानाय ॥२॥
भावार्थभाषाः - यथोत्तमाऽन्नं सेव्यते तथैव श्रेष्ठो रसोऽपि सेव्येत ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे उत्तम अन्न सेवन केले जाते तसेच उत्तम रसही सेवन केला पाहिजे. ॥ २ ॥