इ॒दं वा॑मा॒स्ये॑ ह॒विः प्रि॒यमि॑न्द्राबृहस्पती। उ॒क्थं मद॑श्च शस्यते ॥१॥
idaṁ vām āsye haviḥ priyam indrābṛhaspatī | uktham madaś ca śasyate ||
इ॒दम्। वा॒म्। आ॒स्ये॑। ह॒विः। प्रि॒यम्। इ॒न्द्रा॒बृ॒ह॒स्प॒ती॒ इति॑। उ॒क्थम्। मदः॑। च॒। श॒स्य॒ते॒ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब छः ऋचावाले उनचासवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा और प्रजा की कैसे वृद्धि हो, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ राजमनुष्याः कथं वर्धेरन्नित्याह ॥
हे इन्द्राबृहस्पती ! वामास्य इदं प्रियमुक्थं मदश्च हविः शस्यते ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात राजा व प्रजेच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.