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वाय॒विन्द्र॑श्च शु॒ष्मिणा॑ स॒रथं॑ शवसस्पती। नि॒युत्व॑न्ता न ऊ॒तय॒ आ या॑तं॒ सोम॑पीतये ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vāyav indraś ca śuṣmiṇā sarathaṁ śavasas patī | niyutvantā na ūtaya ā yātaṁ somapītaye ||

पद पाठ

वायो॒ इति॑। इन्द्रः॑। च॒। शु॒ष्मिणा॑। स॒ऽरथ॑म्। श॒व॒सः॒। प॒ती॒ इति॑। नि॒युत्व॑न्ता। नः॒। ऊ॒तये॑। आ। या॒त॒म्। सोम॑ऽपीतये ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:47» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजा और अमात्य के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शुष्मिणा) बलयुक्त और (शवसः) बल के (पती) पालन करनेवाले (नियुत्वन्ता) स्वामी और समर्थ (वायो) बड़े बल से युक्त (इन्द्रः, च) और राजा (नः) हम लोगों के (ऊतये) रक्षण आदि के और (सोमपीतये) ऐश्वर्य्य के पालन के लिये (सरथम्) समान वाहन को (आ, यातम्) प्राप्त होओ ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो राजा के मन्त्री जन बल के बढ़ानेवाले सामर्थ्य युक्त और न्यायकारी होवें, वे आप लोगों के पालन करनेवाले हों ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजामात्यगुणानाह ॥

अन्वय:

हे शुष्मिणा शवसस्पती नियुत्वन्ता वायविन्द्रश्च न ऊतये सोमपीतये सरथमायातम् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वायो) महाबल (इन्द्रः) राजा (च) (शुष्मिणा) बलिष्ठौ (सरथम्) समानं यानम् (शवसः) बलस्य (पती) पालकौ (नियुत्वन्ता) प्रभुसमर्थौ (नः) अस्माकम् (ऊतये) रक्षणाय (आ) (यातम्) (सोमपीतये) ऐश्वर्य्यपालनाय ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! ये राज्ञोऽमात्याश्च बलवर्द्धिनः समर्था न्यायकारिणः स्युस्ते युष्माकं पालकाः सन्तु ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जे राजाचे मंत्री बल वाढविणारे, सामर्थ्ययुक्त व न्यायी असतील त्यांनी तुमचे पालन करावे. ॥ ३ ॥