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को वा॑म॒द्या क॑रते रा॒तह॑व्य ऊ॒तये॑ वा सुत॒पेया॑य वा॒र्कैः। ऋ॒तस्य॑ वा व॒नुषे॑ पू॒र्व्याय॒ नमो॑ येमा॒नो अ॑श्वि॒ना व॑वर्तत् ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ko vām adyā karate rātahavya ūtaye vā sutapeyāya vārkaiḥ | ṛtasya vā vanuṣe pūrvyāya namo yemāno aśvinā vavartat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कः। वा॒म्। अ॒द्य। क॒र॒ते॒। रा॒तऽह॑व्यः। ऊ॒तये॑। वा॒। सु॒त॒ऽपेया॑य। वा॒। अ॒र्कैः। ऋ॒तस्य॑। वा॒। व॒नुषे॑। पू॒र्व्याय॑। नमः॑। ये॒मा॒नः। अ॒श्वि॒ना॒। आ। व॒व॒र्तत् ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:44» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक जनो ! (अद्या) आज (वाम्) आप दोनों को (कः) कौन (रातहव्यः) देने योग्य को दिये हुए (ऊतये) रक्षण आदि के लिये (वा) वा आज (सुतपेयाय) उत्पन्न जो पीने योग्य रस उसके लिये (करते) करता अर्थात् प्रयत्नयुक्त करता (वा) वा (अर्कैः) सत्कारों से सत्कार करता (वा) वा (ऋतस्य) सत्य के सम्बन्ध में (पूर्व्याय) प्राचीन जनों में चतुर के लिये (नमः) अन्न को देता और अनुकूल हुआ (आ, ववर्त्तत्) वर्त्ताव करता है, उसका (येमानः) जो नियम करते हुए सत्कार करते हैं, उनका आप दोनों सत्कार करें । और हे विद्वन् ! जिस कारण आप इन दोनों से विद्या को (वनुषे) माँगते हो, इससे इन दोनों का निरन्तर सत्कार करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशक जनो ! जो आप दोनों का सत्कार करें, उनको उत्तम प्रकार शिक्षित और सभ्य अर्थात् सभा के योग्य करो और जिनसे विद्या का ग्रहण कराओ, उनका निरन्तर सत्कार भी करो ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अश्विनाऽद्या वां को रातहव्य ऊतये वाद्या सुतपेयाय करते वाऽर्कैः सत्करोति वर्त्तस्य पूर्व्याय नमो ददाति अनुकूलो आ ववर्त्तत् तद्ये येमानः सत्कुर्वन्ति तान् युवां सत्कुर्य्यातम्। हे विद्वन् ! यतस्त्वमाभ्यां विद्यां वनुषे तस्मादेतौ सततं सत्कुरु ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कः) (वाम्) युवाम् (अद्या) अस्मिन्नहनि (करते) करोति (रातहव्यः) दत्तदातव्यः (ऊतये) रक्षणाद्याय (वा) (सुतपेयाय) निष्पन्नरसपातव्याय (वा) (अर्कैः) सत्कारैः (ऋतस्य) सत्यस्य (वा) (वनुषे) याचसे (पूर्व्याय) पूर्वेषु कुशलाय (नमः) अन्नम् (येमानः) नियच्छन्तः (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (आ) (ववर्त्तत्) वर्त्तते ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापकोपदेशकौ ! ये युवां सत्कुर्य्युस्तान् सुशिक्षितान् सभ्यान् सम्पादयतम्, येभ्यो विद्यां ग्राहयतं तान् सततं पूजयतं च ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक व उपदेशकांनो ! जे तुमचा सत्कार करतात त्यांना उत्तम प्रकारे शिक्षित करून सभ्य करा व ज्यांच्याकडून विद्येचे ग्रहण केले जाते त्यांचा निरंतर सत्कार करा. ॥ ३ ॥